संगी हो जोहार लेवो,
गुरुवार, 10 दिसंबर 2009
सुभीता खोली के नवा चिंतन !!!
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 7:42 am 4 टिप्पणियाँ
लेबल: छत्तीसगढ़
शनिवार, 5 दिसंबर 2009
रिकिम रिकिम के साहित सेवा अऊ, भोभला बर चना चबेना
संगी हो जय जोहार,
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 6:21 pm 8 टिप्पणियाँ
लेबल: अड़हा के गोठ
शनिवार, 24 अक्तूबर 2009
चित्रगुप्त हा घेरी-बेरी जोजियावत हे, यम के भंइसा अब ब्लाग बनावत हे.
ऍती भैंसा ला खोजत-खोजत मेहतरू हा बरातू ला भेंट पईस,राम-राम जोहार हुईस ता बरातू हा पूछीस-काय होगे मेहतरू भाई बिह्नियाच बिहनिया हलकान दिखत हस,काय अलहन होगे, मेहतरू किहिस -का बतावं बरातू भाई!जमराज महाराज हा कोरट जाये बर तेयार बईठे हवय,भैंसा ला बने मांज-धो के खवा पिया के पानी भरे ला गे रहेवं कोन जानी कहाँ मसकदिस लुवाठ हा,उही खोजत हवं गा,बरातू किहिस -भैंसा ला ता ये दे इही बाजार चौक मा भेंटे रेहेवं.पुछेवं ता किहिस वो दे लछमन के बाबु भुलाऊ हा कम्पूटर दुकान खोले हवय उंहा जात हवं,अईसने बतईस गा मोला बाकी ला तैं जान,मेहतरू हा दऊडत-दऊडत चित्रगुप्त मेर गिस अऊ किहिस महाराज भैंसा हा मिल गे हवय,चल जल्दी बाजार में हवय नहीं ते अऊ कौनो मेर रेंग दिही हमर मन के बुता ला ते आज जमराज महाराज बना दिही, चित्रगुप्त हा झटकून मेहतरू संग रेंग दिंस, बजार मा पहुचिस ता भैंसा ला अमर डारिस,बने भुलाऊ के कम्पूटर दुकान मा बईठे रहय माडिया के, चित्रगुप्त अऊ मेहतरू ला देखिस ते भैंसा हा "किहिस आव-आव तुही मन ला अगोरत रेहेवं में हा"!
चित्रगुप्त किहिस ते हा साले इंहा बईठे हस आके उंहा महाराज हा कोरट जाये बर तेयार बईठे तेहा इंहा माडिया के पगुरावत हस, भैंसा कथय-देख गा तैहाँ साले-ताले आनी-बानी के गोठ ला मत गोठिया,जैसे ते सेवक वईसने महू सेवक,ये दे तुम्हरे बुता ला बनाये बर आये हवं. काय बुता रे-चित्रगुप्त किहिस. तू मन कतका जमराज ला चुतीया बनावत हव तेखर भंडा फॉर करना हे कहिके इंहा इंटरनेट मा आये हवं, काली पंडरु हा किहिस बाबु एक ठीक नवा जिनिस आये हवय इंटरनेट मा अऊ भुलाऊ टूरा हा खोले हवय बजार मा ओमा काहीं भंडाफॉर करना हे ता जा,उंहा जा के बुलाग ला बनवा के अपन गोठ ला कहिबे तहां छाप दिही अऊ जम्मो दुनिया हा जान डारही,तेखरे सेती मेहा इहाँ आये हवं.
हमन काय चुतीया बनात हन रे?मेहतरू किहिस, तेहा चुतीया कथस देख मोर मनता हा भोगाही ता आने -ताने हो जाही,साले तेहाँ मोर खरी-चुनी ला लेग के अपन भैंसी ला खवा देथस, हरियर कांदी ला थे तेला अपन घर मा लेग जथस,काय अपन डौकी ला खवाथस के अपन दाई ला खवाथस,साले अऊ मोला पूछत हस काय चुतीया बनावत हस,काली रात के मोर पंडरु हा लंघन भूखन रही गे,अरे ओखर दाई मर गे ता का होगे में ता हवं ओला पोसे बर, मोर नाव ले खाए के पईसा देते जमराज हा तेला तुमन उडावत हव अऊ उही पईसा मा मेछरावत हव, डेढ़ कुंटल के सवारी ला बोहे -बोहे महू हा थेथर -मेथर हो जाथों,इहु ला काय सूझे हे जमराज ला भैंसा मा चढे के कौनो घोडा-मोडा लेतिस तेमे चढ़तिस ता भैंसा के सऊख करत हे,अऊ तेहा चित्रगुप्त बने हस तोरो मजा ला चीखाहूँ, ते काय नई करस, जमराज इंहा मुकदमा चलथे ता पेशी बढाये के पईसा,गवाही करा ले घलो अऊ मुद्दई करा ले घलो,दुनो डाहर ले खा बाबु,कौनो ला रोरव नरक के सजा सुनाथे तेखर फईले ला गायब कर देथस अऊ नरक वाला मन फाईल ला मांगथे ता नई मिलत हे कहिके मुजरिम ला इन्हें मजा करावत हस,तोरो अड़बड पोल हवय सब ला खोल के दुनिया ला जनाहूँ के तुमन घला भ्रष्ट हव,धरती के बीमारी इंहा तक ले लहुट गये,उहाँ के मनखे मन तुमन ला भगवान बना के पूजत हवय,इहाँ तुमन मोरे चारा दाना पानी ला खावत हव, में हाँ नई जांव अऊ एदे मेहतरू हा साले मोर नहवाये के साबुन ला अऊ माटीराख घलो ले जथे, जमराज ला कहिबे इही हाँ अपन पीठ मा बोह के लेगही ओला कोरट मा, जाओ तुमन हा, मोला तुमहर पोल ला बलाग मा खोलन दओ.
दुनो झन भैंसा के गोठ ला सुनिस तहाँ जम्मो दुनिया के आघू मा नगरा हो जाबो सोच के भैंसा के गोड ला धर लिस अऊ गोहार पारत किहिस "आज अईसन गलती नई होय भैंसा महाराज हमन ला माफ़ी दे दे ये छापे छापे के अलहन बुता ला झन कर" बोलो ना रे अभी ता तुमन साले-माले कहत रहेव अऊ अभीचे गोड ला धरत हव, छापों का ? नई -नई भैंसा महाराज अईसन झन कर गा, ते जौन कहिबे तौन मान लेबो हमन-चित्रगुप्त रोंवासी हो गे, ता फेर ठीक हे मोर थोकिन सरत हे तेला मने ला पड़ही. ले बता ददा बता-मेहतरू किहिस, पहिले बात मोर कोठा मा गोबर कचरा के सफाई दू-दू घंटा मा होना चाही,मोर कोठा मा पंखा-अऊ ऍसी होना चली, रोज हरियर कांदी अऊ बने अकन खरी चुनी होना चाही,मोर नहाये बर फुव्वारा के बेवस्था होना चाही, अऊ देख रे मेहतरू डेटोल के साबुन मा रोज मुंधरहा अऊ संझकरहा बने घंसर-घंसर के नहवाबे, अऊ मोर पंडरु बर तोर भैंसी के दूध के बेवस्था करबे-मंजूर हे ता बताव -भैंसा हा किहिस, चित्रगुप्त अऊ मेहतरू पहटिया दुनो झन गोड ला धर के किहिस -मंजूर हवय हम ला अऊ आप मन रिस ला छोडोव्, हमर संगे चलव जमराज हा अगोरत हे,अड़-बड बेरा होगे खिसियात हो ही, खिसियाही तू मन ला मोला काबर खिसियाही, अऊ मोला कांही किहिस ते तुमहर जम्मो भेद ला फेर ओखरे आघू मा बफल दू हूँ . ले ओपार ला में बना लू हूँ ते चल-चित्रगुप्त किहिस, में हा ता चलत हवं फेर जान लुहू ना महू हा छापे ला जान डारे हवं, अईसे कहिकी भैंसा हा रेंगिस.
संगी हो कईसे लागिस हमर भैंसा के छ्पाई हाँ? बने बताहू.चिठ्ठी, इ मेल, अऊ टिपणी ले.....
आपके गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा
अभनपुरिहा
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 7:30 pm 5 टिप्पणियाँ
लेबल: बियंग ललित शर्मा
सोमवार, 19 अक्तूबर 2009
जइसन के मालिक लिये दिये, तइसनेच देबो असीस
आप मन के
गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा
अभनपुरिहा
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 12:09 pm 2 टिप्पणियाँ
लेबल: "ललित शर्मा", अड़हा के गोठ
बुधवार, 14 अक्तूबर 2009
ये दे पटवारी ला फेर छरे हे, काबर कि रावन नई जरे हे
आपके
गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 12:33 pm 1 टिप्पणियाँ
लेबल: "ललित शर्मा", अड़हा, बियंग
शनिवार, 10 अक्तूबर 2009
नई उतरिस बिच्छी के झार-पटवारी साहेब ला परगे मार
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 10:10 am 4 टिप्पणियाँ
लेबल: बियंग, ललित शर्मा
रविवार, 4 अक्तूबर 2009
अड़हा बईद परान घाती-पटवारी साहेब ला पर गे फांसी
संगी हो काली पटवारी भईया के डाक्टरी ला देखबो, आज के कथा के इही मेर बिसराम हे
गंवैय्हा संगवारी
ललित शर्मा
अभंपुरिहा
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 4:59 pm 6 टिप्पणियाँ
लेबल: बियंग, ललित शर्मा
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
फोकट के गियान- झन दे सियान - पटवारी भईया के गोठ बात
संगी हो जोहर लओ
काली के गोठ ला आगे बढ़ावत हौं संगी हो, हमर पटवारी भैया के किस्सा नई सिराय हवे, एखर तो एक ले एक किसा हवे, पटवारी ला पढ़े के बहुत सौउंख हवय, सबे तरह के पुस्तक ला पढ़थे, पुस्तक पढ़ना घलो एक ठक बीमारीच आये, घर ले पटवारीन हाँ बाजार भेजते साग ले बर, ता बूजा हा साग के पईसा के पुस्तक बिसा डारथे, रेलगाडी मा जाथे ता बिदाउट जाथे, साधू के बाना ला लगा के भेस बदल के चल देथे अऊ टिकिस के पईसा के पुस्तक बिसा ले थे, घर के सबो झन एखर ले अब परसान होगे, दिन रात बइहा भुतहा कस गियान बांटे के उदिम लगावत रहिथे, एक घावं का हुईस का बताओं संगी हो बताये मा घलो सोचे ला परत हवय, ओखर मन मा पुस्तक पढ़े के गियान आगे के गुण तीन रंग के होते, सत+तम अऊ रज, मांस मदिरा अऊ भोग तमोगुन मा आथे, पटवारी हा सोच डारिस ये दे तो बड़ गियान के बात हवय एखर परचार परसार होना चाही, ता कईसे करे जाय, एक दिन बिहानियाच बिहनिया दारू भट्ठी के आघू मा खड़े होगे जौउन भी पी के आवय तेला धर के दारु के अवगुन समझावे, दरुहा मन ओखर गोठ ला धियान नई दे के रेंग देवैय, अऊ कहय"पटवारी है अतका बईहा हो जाही हमन सोचे नई रेहेन गा, पहीले पहील रद्दा मा रोक के गोठियावे, ये दे अब भट्ठी तक अमरगे,हलाकान कर डरे हे गा," दू दिन ले सरलग इही बूता चलिस भट्ठी में गिराहिक आना कमती होगे, भट्ठी के गल्ला हा खंगती होगे, ठेकेदार ला जब एखर बूता के पता चलिस ता अपन पंडा मन ला चमकईस" साले अईसे मा ता तुमन मोला बोर डारहु नई बचावव ओला सुधारो रे,' आघू दिन पटवारी हा फेर भट्ठी पहुँचगे, पंडा मन ओला देखिस त किहिस "आ भईया घाम लागत होही ऊँहा काबर खड़े हस गा"अईसे कहिके भीतरी मा लेगिस अऊ नगद छरिस, मार ला देखिस ता पटवारी बाहिर भागे के कोसिस करिस ता भट्ठी के मुहाटी मा दरुहा मन (जेन ला गियान बांटे रिहिस) ठेंगा धरके खड़े रहय उहू मन मौउका का फईदा उठईस भका-भक इहु मन दिस, बहिती गंगा मा अपन हाथ धो डारिस, लटे-पटे पटवारी हा बांचिस अऊ जी पिरान ला देय के पुलिस थाना भागिस, मुड़ कान फ़ुट गे रहे, पुलिस हा समझईस "ये दे गियान हा दरुहा मनखे मन बर नइये भईया, जगा देख के गियान बांटे जाथे, तीन महिना ले खटिया मा परे रिहिस बिचारा हा, बने बूता करे ला सोचिस अऊ अलकरहा मा फंस के हाथ गोड़ ला टोरईस, तीन महिना बाद खटिया ले उठिस त सोचिस अइसने सोझे परचार मा साले मन हा मार मार के धुर्रा बिगार डारिस, बने दूसरा रद्दा खोजे जाय, जौउन मेर ओखर घर हे तौउन मेर चारो मुड़ा घला दरुहा मन रहिथे, त का करिस अड़बड़ अकन सद्वचन दारू अऊ दरुहा मन के खिलाफ में बना डारिस, अऊ येदे ला सबके कोठ मा लिखहूँ त बने परचार होही कहिके अपन मन मा सोच डारिस, दिन मा लिखहूँ ता जम्मो कालोनी हा जान डारही कहिके रात के लिखे के बिचार करके गेंरु अऊ अमली के काड़ी के जुगाड़ कर डारिस, रात के १२ बजे सद्वचन के लेखन कारज ला चालू करिस एके ठक कोठ मा लिखे रिहिस तभे आरो होगे पारा वाला मन जग गे अऊ अंधियार मा चोर समझ के बने ठठा डारिस, हमन पहुचेन ता चीन्ह के छोडायेन पटवारी भईया हे कहीके, एक घांव गियान बांटे के चक्कर मा लहुट के फेर खटिया मा चल दिस.
आपके
गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा
अभंपुरिहा
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 7:44 am 6 टिप्पणियाँ
गुरुवार, 24 सितंबर 2009
बियंग -पईधे गाय कछारे जाये-पटवारी साहेब ला कोन समझाये
संगी हो जोहार लेहु ना,
आज हमर पटवारी भईया के किसा ला सुनव, देखथवं मेहा आज कल समाज सेवा बड चालू होगे हवय, जहाँ देखबे उहां समाज सेवा,ये दे समाज सेवा हा एक ठक बहुत बड़े बीमारी हवय, छुतहा रोग हे,कई झन बड सौख ले करथे कई झन अपन जी पिरान ला बचाए बर करथे,हमर एक झन मयारू मितान हवय,हमन ओला पटवारी भइया कहिके बलाथन, उहू ला समाज सेवा के बीमारी धर डारे हवय, आज कल संस्कार अऊ सेवा,लईका मन ला सुधारे के गोठ,अऊ नाना परकार के गियान फोकट में बाटंत रहिथे,जम्मो गांव भर के मनखे मन ओखर ले अब डराय ला चालू होगे,ओखर समाज सेवा हा,ओखरो बर एक ठक बीमारी होगे हवय नइ कहीही त ओला चैन नई परय,कही दिस त लोगन मन समझ नइ परय,देह हा दुबरागे हवय आंखी हा खुसर गे हवय समाज ला सुधारे के संसो मा दिन रात चैन नइ परय, समाज सेवा हा महामारी होगे,घर मा जाथे त डउकी हा चमकात हे,लईका मन ला समझाथे त ओ मन नई समझे,बड़ा परेशानी मा परगे बपरा हा,ये दे बीमारी के पाछु मा एक ठन कहानी हवय के काबर ओला बीमारी हा धरिस,वो हा सरकारी नौकरी में लगिस त बने पद पा गे,अऊ पटवारी के नौकरी,चित भी ओकरे अऊ पट भी ओखरे चारो मुडा ले पईसाच पईसा,अब ओखर घर मा चंदा मंगईया के लेन लगे रहय, कभू पत्रकार,त कभू गणेस चंदा,त कभू धर्मसाला के चंदा,त कभू सरकारी चंदा, दिन रात हलाकान होगे.
जोहार लेव संगी हो .
आपके
गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा
(कार्टून : त्र्यंबक शर्मा जी से साभार) ,
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 6:17 pm 8 टिप्पणियाँ
लेबल: बियंग, ललित शर्मा
मंगलवार, 22 सितंबर 2009
किसिम किसिम के गोठ अऊ...... भोभला बर चना चबेना
संगी हो जय जोहार,
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 8:46 pm 3 टिप्पणियाँ
लेबल: अड़हा, बियंग, ललित शर्मा
रविवार, 20 सितंबर 2009
जय जय ३६ गढ़ महतारी
प्रस्तुतकर्ता ब्लॉ.ललित शर्मा पर 10:30 pm 1 टिप्पणियाँ
लेबल: ३६ गढ़, ललित शर्मा