संगी हो जोहार लेवो,
अड़बड बेर होगे कुछु लिख पढ़ नई पाए हंव, काबर के लिखे के सुभीता नई मिलिस. चलो आज सुभीता के सुरता होगे ता ऐखरे उपर चर्चा कर जाये. हमर एक झिन मयारू मित्र हे सूर्यकांत गुप्ता जी, जौउन हा बने-बने गोठ ला गोठियाथे. एक दिन हमन फोन मा गोठियात रहें ता वो हा किहिस "ये दे सुभीता खोली के बेरा होगे महाराज, अब मै जात हंव". ता महू संसो मा पर गेंव, काला "सुभीता खोली" कहत हे. पुछेंव ता "लेटरिंग खोली" के नांव सुभीता खोली धरे हंव किहिस. हे भगवान कहिके माथ ला धार डारेंव, ओखर बाद महू सोच मा पर गेंव, अऊ मोर चिंतन अब सुभीता खोली डाहर चल दिस. हमर जीवन मा सुभीता खोली के महत्वपूर्ण स्थान हवे, ता मैं हिसाब लगायेंव के एक मनखे हाँ रोज सुभीता खोली ला १० मिनट देते ता एक महिना मा ३०० मिनट अऊ एक साल मा 36 सौ मिनट होगे अऊ ओकर उमर के औसत निकालबे ता जियादा ले जियादा ६० साल जियत हे ता २१६००० मिनट याने १५० दिन देते, अऊ इही १५० दिन मा अपन जिनगी के महत्वपूर्ण निर्णय ला लेथे, जब मनखे हाँ सुभीता खोली मा रहिथे ता एक से एक विचार उमड़-घुमड़ के डीमाग मा आथे. कभू-कभू अईसन होथे के जिनगी के सबले जरुरी फैसला उपर मुहर सुभीता खोलीच मा लग जथे.
बड़े-बड़े साहितकार मन अपन उपन्यास के प्लाट ला सुभीता खोली मा सोच डारथे अऊ बैठे-बैठे जम्मो कहानी गढ़ डारथे. सुभीता खोली के चिंतन मा नवा-नवा गीत, कविता, ददरिया के जन्म हो जथे. अऊ उही हाँ हिट हो जथे. हमर एक झिन नामी साहितकार हाँ एक बेर मोला एखर महत्त्व के बारे में बताये रिहिस ता मैं हाँ धियान नई दे रेहेंव. एक दिन महू हा टीराई मार के देखेंव ता जौउन कविता के सुभीता खोली मा जन्म हुईसे तेहाँ हिट होगे. तब ले सुभीता खोली के बने उपयोग ला मै करथंव, पहिले कविता ला लिखँव ता संपादक मन हा " कृपया भाव बनाए रखें, आपकी कविता बहुत अच्छी है लेकिन हम इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. आप अन्यत्र उपयोग कर सकते हैं" अईसने लिख के सादर वापस भेज देवे. ता मोला बड अलकरहा लगे. अतेक मेहनत करके लिखबे अऊ अपने कविता ला कौउनो "अन्यत्र उपयोग" करे के स्वतंत्रता दे थे, ता सुन के जिव हाँ कौउवा जथे. लेकिन जब ले सुभीता खोली के चिंतन चालू हुईसे, तब ले ये समस्या के निवारण होगे. काबर के मैं नई जानत रेहेंव के जतका पत्र-पत्रिका वाले संपादक मन हे जम्मो हाँ सुभीता खोली के चिन्तक हवे. अब दरुवाहा संग दरुवाहा हो जाबे, तभे तोर गोठ हाँ ओखर समझ मा आही अऊ डीमाग हाँ पुरही, ता एखर मरम ला मैं जान डारेंव अऊ सुभीता खोली के चिन्तक संपादक मन मोर कविता ला समझे ला धरिस अऊ समझ के छापे ला धरिस.
सुभीता खोली के महिमा के जतका बखान करबे ओतके कमती हवे. एक बेर में हाँ मकान बनावत रेहेंव, अब इंजिनियर ला ब्लाबे अऊ नक्शा ला बनवाबे ता आनी-बानी के फ़ीस ला मांगथे, ता मैं हाँ सोच डारेंव हमू ता पढ़े लिखे हन, हम हा काबर नक्शा ला नई बनाये सकन, अईसे सोच के नक्शा ला मीही बनायेंव अऊ ठेकेदार ला बला के नींव के चिन्ह दे देंव, मकान के काम-बुता चालू होगे. नींव के बाद चौखट हाँ घलो चढ़गे, मकान मा पानी छित के मैं हाँ सुभीता खोली मा गेंव, ता बईठे-बईठे सोचेंव के तीन ठिक मुहाटी हाँ एके लैन माँ होगे अऊ वास्तु शास्त्र के हिसाब से पाछू पेरही, ता सुभीता खोली के चिंतन हा स्थायी काम करिस. सुभीता खोली ले निकल के तुरते दू ठिक चौखट ला ठेकेदार के आये ले पहिली गिरा डारेंव, अतका काट करिस सुभीता खोली के चिंतन हाँ. संगी हो इहु चिंतन हाँ सुभीता खोलीच ले निकल के बहिर आये हवे. आप मन ला कईसे लागिस बताहू.
ता भैया हो ये दे हाँ मोर सुभीता खोली के चिंतन रिहिस, कईसे लागिस थोकिन टिपिया के बताऊ, अऊ सुभीता खोली के गोठ ला अऊ कौनो दिन फेर गोठियाबो.
आप मन के गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा अभनपुरिहा
4 Comments:
मै मात्र ओखर एक ठन नाम धरे रहेंव. परम हंस स्वामी ललितानंद जी के किरपा से ओला अतेक महत्व मिल जाहि कहिके सोचे नई रेहेंव. धन्य हो गे सुभीता खोली. वैसे एक बात कहौं के बादशाह अकबर हा बीरबल ला पूछिस के बीरबल तोला सबसे जादा सुख के अनुभव कहाँ होथे. तव एला बीरबल प्रयोग करके सिद्ध करिस लेगे जंगल माँ. अब अकबर ला भैया जरूरत परिस ओखर पेट एकदम पिराये लागिस. बीरबल ला कहिस भैया इहाँ तो कोनो ठिकाना नई ये बेवस्था कर. बिचारा बेवस्था करिस. बादशाह काम निपटआइस . फेर बीरबल पूछिस कैसे लागिस महराज. बादशाह कहत हे मोर प्रश्न के उत्तर मिल गे बीरबल के जादा सुख कामा मिलथे. जय होस्वामीजी.
सुभिता खोली के महिमा अपार गुन गांवय बारं बार
ललित महराज अउ गुप्ता दाउ के गोठ मा बेडा पार हे.
भाशा के कारण बात समझ नहीं पाई धन्यवाद्
... छत्तीसगढी गोठ बने लगिस !!!!
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