शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

चित्रगुप्त हा घेरी-बेरी जोजियावत हे, यम के भंइसा अब ब्‍लाग बनावत हे.

जमराज हा चित्रगुप्त ला रात के बने चेता के सुतिस के मोर भैंसा ला बने खवा पिया के सुग्घर मांज धो के राखहु, काली मोला मुंधरहाच ले कोरट जाना हवय भुलाहु झन, चित्रगुप्त हा जम्मो नौकर मन ला चेता के ऊहु हा सुते ला चल दिस, ऍती बिहनिया हुईस ता जमराज हा कोरट जाये बर तेयार होगे, चित्र गुप्त ला पुछिस सब तेयार हे ,चित्र गुप्त किहिस हा महाराज, जा एक बार अऊ देख के आबे कहिके पठोईस,चित्रगुप्त कोठा मा गिस ते जम्मो नौकर मन मुह ला लमाय रहय,पुछिस-का होगे मेहतरू मुह ला कैसे ओदारे हव, मेहतरू किहिस महाराज मुंधरहाच ले बने भैंसा ला खवा पिया के मांज धो के तेयार करके रखे रेहेवं,तभे रानी बाई के पानी भरे के बुल्ल्वा आगे ता उहाँ चल देवं आके देखेवं ता भैंसा हा नई ये,सबे पहटिया मन ला खोजे ला भेजे हवं,कईसे करना चाही तीही बता, बडे महाराज कहिबे ता नरक मा भेज दिही तहां होगे हमर बुता हा, जाओ जल्दी खोज के लाओ तुमन भैंसा ला तलघस ले महाराज के गुस्सा ला मै मडहाय के उदिम करत हवं, जम्मो नौकर मन भैंसा ला खोजे ला धरिस.खेत-खार बारी-बखरी,गावं-खोर ला उत्ता धुर्रा खोजे ला भिडे रहय,जम्मो हा हलाकान होगे, ऍती महाराज हा घेरी-बेरी चित्रगुप्त ला पूछे -का होगे गा मोर सवारी नई आये हवय?अऊ मोर कोरट जाये के टैम होवत हे,ये दे अईसने होथे जब काहीं अलकरहा काम रहिथे ता साले मन अईसनेच करथे,भेज तो सब्बो ला रौरव नरक मा, ऊहचे सुधरही बूजा मन इंहा रिकिम-रिकिम के खा-खा के मोटागे हवय, चित्रगुप्त किहिस-रिस झन कर महाराज.वो मन आतेच होही, भैंसा के हाथ गोड मा गोबर-ओबर लेगे रहिथे तेला धोये मांजे थोकिन बेर हो जथे, जाओ जल्दी लाये के बेवस्था करव-जमराज हा किहिस.

ऍती भैंसा ला खोजत-खोजत मेहतरू हा बरातू ला भेंट पईस,राम-राम जोहार हुईस ता बरातू हा पूछीस-काय होगे मेहतरू भाई बिह्नियाच बिहनिया हलकान दिखत हस,काय अलहन होगे, मेहतरू किहिस -का बतावं बरातू भाई!जमराज महाराज हा कोरट जाये बर तेयार बईठे हवय,भैंसा ला बने मांज-धो के खवा पिया के पानी भरे ला गे रहेवं कोन जानी कहाँ मसकदिस लुवाठ हा,उही खोजत हवं गा,बरातू किहिस -भैंसा ला ता ये दे इही बाजार चौक मा भेंटे रेहेवं.पुछेवं ता किहिस वो दे लछमन के बाबु भुलाऊ हा कम्पूटर दुकान खोले हवय उंहा जात हवं,अईसने बतईस गा मोला बाकी ला तैं जान,मेहतरू हा दऊडत-दऊडत चित्रगुप्त मेर गिस अऊ किहिस महाराज भैंसा हा मिल गे हवय,चल जल्दी बाजार में हवय नहीं ते अऊ कौनो मेर रेंग दिही हमर मन के बुता ला ते आज जमराज महाराज बना दिही, चित्रगुप्त हा झटकून मेहतरू संग रेंग दिंस, बजार मा पहुचिस ता भैंसा ला अमर डारिस,बने भुलाऊ के कम्पूटर दुकान मा बईठे रहय माडिया के, चित्रगुप्त अऊ मेहतरू ला देखिस ते भैंसा हा "किहिस आव-आव तुही मन ला अगोरत रेहेवं में हा"!

चित्रगुप्त किहिस ते हा साले इंहा बईठे हस आके उंहा महाराज हा कोरट जाये बर तेयार बईठे तेहा इंहा माडिया के पगुरावत हस, भैंसा कथय-देख गा तैहाँ साले-ताले आनी-बानी के गोठ ला मत गोठिया,जैसे ते सेवक वईसने महू सेवक,ये दे तुम्हरे बुता ला बनाये बर आये हवं. काय बुता रे-चित्रगुप्त किहिस. तू मन कतका जमराज ला चुतीया बनावत हव तेखर भंडा फॉर करना हे कहिके इंहा इंटरनेट मा आये हवं, काली पंडरु हा किहिस बाबु एक ठीक नवा जिनिस आये हवय इंटरनेट मा अऊ भुलाऊ टूरा हा खोले हवय बजार मा ओमा काहीं भंडाफॉर करना हे ता जा,उंहा जा के बुलाग ला बनवा के अपन गोठ ला कहिबे तहां छाप दिही अऊ जम्मो दुनिया हा जान डारही,तेखरे सेती मेहा इहाँ आये हवं.

हमन काय चुतीया बनात हन रे?मेहतरू किहिस, तेहा चुतीया कथस देख मोर मनता हा भोगाही ता आने -ताने हो जाही,साले तेहाँ मोर खरी-चुनी ला लेग के अपन भैंसी ला खवा देथस, हरियर कांदी ला थे तेला अपन घर मा लेग जथस,काय अपन डौकी ला खवाथस के अपन दाई ला खवाथस,साले अऊ मोला पूछत हस काय चुतीया बनावत हस,काली रात के मोर पंडरु हा लंघन भूखन रही गे,अरे ओखर दाई मर गे ता का होगे में ता हवं ओला पोसे बर, मोर नाव ले खाए के पईसा देते जमराज हा तेला तुमन उडावत हव अऊ उही पईसा मा मेछरावत हव, डेढ़ कुंटल के सवारी ला बोहे -बोहे महू हा थेथर -मेथर हो जाथों,इहु ला काय सूझे हे जमराज ला भैंसा मा चढे के कौनो घोडा-मोडा लेतिस तेमे चढ़तिस ता भैंसा के सऊख करत हे,अऊ तेहा चित्रगुप्त बने हस तोरो मजा ला चीखाहूँ, ते काय नई करस, जमराज इंहा मुकदमा चलथे ता पेशी बढाये के पईसा,गवाही करा ले घलो अऊ मुद्दई करा ले घलो,दुनो डाहर ले खा बाबु,कौनो ला रोरव नरक के सजा सुनाथे तेखर फईले ला गायब कर देथस अऊ नरक वाला मन फाईल ला मांगथे ता नई मिलत हे कहिके मुजरिम ला इन्हें मजा करावत हस,तोरो अड़बड पोल हवय सब ला खोल के दुनिया ला जनाहूँ के तुमन घला भ्रष्ट हव,धरती के बीमारी इंहा तक ले लहुट गये,उहाँ के मनखे मन तुमन ला भगवान बना के पूजत हवय,इहाँ तुमन मोरे चारा दाना पानी ला खावत हव, में हाँ नई जांव अऊ एदे मेहतरू हा साले मोर नहवाये के साबुन ला अऊ माटीराख घलो ले जथे, जमराज ला कहिबे इही हाँ अपन पीठ मा बोह के लेगही ओला कोरट मा, जाओ तुमन हा, मोला तुमहर पोल ला बलाग मा खोलन दओ.

दुनो झन भैंसा के गोठ ला सुनिस तहाँ जम्मो दुनिया के आघू मा नगरा हो जाबो सोच के भैंसा के गोड ला धर लिस अऊ गोहार पारत किहिस "आज अईसन गलती नई होय भैंसा महाराज हमन ला माफ़ी दे दे ये छापे छापे के अलहन बुता ला झन कर" बोलो ना रे अभी ता तुमन साले-माले कहत रहेव अऊ अभीचे गोड ला धरत हव, छापों का ? नई -नई भैंसा महाराज अईसन झन कर गा, ते जौन कहिबे तौन मान लेबो हमन-चित्रगुप्त रोंवासी हो गे, ता फेर ठीक हे मोर थोकिन सरत हे तेला मने ला पड़ही. ले बता ददा बता-मेहतरू किहिस, पहिले बात मोर कोठा मा गोबर कचरा के सफाई दू-दू घंटा मा होना चाही,मोर कोठा मा पंखा-अऊ ऍसी होना चली, रोज हरियर कांदी अऊ बने अकन खरी चुनी होना चाही,मोर नहाये बर फुव्वारा के बेवस्था होना चाही, अऊ देख रे मेहतरू डेटोल के साबुन मा रोज मुंधरहा अऊ संझकरहा बने घंसर-घंसर के नहवाबे, अऊ मोर पंडरु बर तोर भैंसी के दूध के बेवस्था करबे-मंजूर हे ता बताव -भैंसा हा किहिस, चित्रगुप्त अऊ मेहतरू पहटिया दुनो झन गोड ला धर के किहिस -मंजूर हवय हम ला अऊ आप मन रिस ला छोडोव्, हमर संगे चलव जमराज हा अगोरत हे,अड़-बड बेरा होगे खिसियात हो ही, खिसियाही तू मन ला मोला काबर खिसियाही, अऊ मोला कांही किहिस ते तुमहर जम्मो भेद ला फेर ओखरे आघू मा बफल दू हूँ . ले ओपार ला में बना लू हूँ ते चल-चित्रगुप्त किहिस, में हा ता चलत हवं फेर जान लुहू ना महू हा छापे ला जान डारे हवं, अईसे कहिकी भैंसा हा रेंगिस.

संगी हो कईसे लागिस हमर भैंसा के छ्पाई हाँ? बने बताहू.चिठ्ठी, इ मेल, अऊ टिपणी ले.....

आपके गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा

अभनपुरिहा

5 Comments:

Mishra Pankaj said...

बहुत सुन्दर शर्मा जी मन खुश हो गया ये पढ़कर

सूर्यकान्त गुप्ता said...

वाह महराज कतेक सुग्घर कल्पना हे. उच्च अधिकारी ले शिकायत के डर माँ बड़े बड़े के घिग्घी बंध जाथे. एखरे खातिर चपरासी घलो ला मनाये बर परथे मजा आ गे.

ASHOK BAJAJ said...

सुघ्घर हे

Rahul Singh said...

साक्षरता, इ-साक्षरता और पत्रकारिता के लिए मिला-जुला सुंदर प्रहसन है यह तो. शायद लोगों ने पढ़ा नहीं है, हाथों-हाथ उठा लेंगे.

संज्ञा अग्रवाल said...

बहुत रोचक रचना है ललित जी . पहली बार इतनी छत्तीसगढ़ी पढ़ी मैंने पर एक बार भी लेख छोड़ने की इच्छा नही हुई. पूरा पढ़ी .. जय हो भईन्सा जी के !!

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