हमर पटवारी भईया हा जम्मो जमाना ला सुधारे के ठेका ले डारे हवय अपन परन के एकदम पक्का हवय,"परान जाये पर बचन न जाये तईसे,एही सुधारे के बुता मा कईयों बेर मार खा डारे हवे पर सुधरे नहीं,एक घांव हमर गांव मा राजीव दीक्षित आये रिहिसे,स्वदेशी आन्दोलन चलावे, तौन हा बता डारिस के बहुराष्ट्रीय कम्पनी के मॉल खरीदे मा हमर देश के कतना नुकसानी हवय,पटवारी भईया हा बने चेत लगा के सुनिस अऊ ओखर बाद एक दिन वो हा पढ़ डारिस के कोनो दवई कम्पनी हा पहिले दवई बनथे ता अपने मनखे ऊपर परयोग करथे, जब दवई हा बने काट करथे तभे बाज़ार मा बेचे बर उतारथे, ता राजीव दीक्षित के बात ला गांठ बांध के बड़े कम्पनी मन के जिनिस साबुन,माटीराख ,तेल-फूल,सब लेना बंद कर दिस,माटी मा मूड ला मिन्जै,अऊ महि लगा के दाढ़ी बनावे घानी के लिम तेल ला मूड में लगावे कोयला ला पीस के मंजन बना डारिस उहिच ला घसे, बिहनियाच ले पीवरी कपडा पहिर के गटर माला ला घेंच मा अरो के साधना करात हवं करके फेर उही बुता चालू कर दिस, तीर मा ऑधे ता मरे कुकुर बिलाई अईसन महके ला धर लिस, अऊ दुसर हा कहे कईसे गा पटवारी भईया ये का कर डरे गा सिरतोन मा एक दम महकत हे,तुमन ये सब गियान के चीज ला कए जानहु अड़हा हो, ये दे हा परकिरित चिकित्सा हवय.संगे एक ठक बात ला अपन डाहर ले जोर डारिस के दवाई गोली झन खाव सरीर ला भगवान बनाए हवय ता एखर दवाई सरीरे के अन्दर मा हवय,अपन बीमारी ला अपने ठीक करथे,कई बेर ले मार खा डारे हवं ये बेर बने तोल-मोल-के-बोल वाला बुता करना हे,एक दिन में ओखर घर गेंव का हाल - चाल हे तेला पूछे बर,बहिर में ओखर बाबु हा खेलत रिहिस,मेहा पुछेवं-कईसे रे गोंडुल कहाँ हे तोर पापा हा, गोंडुल कहिथे "पापा हा सुते हे, काबर रे ?में पुछेवं, गोंडुल किहिस -बुखार धर ले हवे, में कहेवं "बुखार धर लिस काली ता मोला कहत रिहिसे प्रकितिक चिकत्सा चालू कर दिया हूं, कहिके, गोंडुल कहिथे-का हे अंकल अभी वो रोज रिषी सनान करत रिहिस न, कईसे रे में पुछेवं,गोंडुल हा कहिते"रोज सूबे ले चार बजे उठ के टांकी के ठंडा पानी मा नहावय तेखरे सेती निमोनिया धर ले हवय डाक्टर हा कहात रिहिसे, मेहा घर भीतरी में निगेवं ता खटिया मा पडे रहय आ भाई बईठ कहात हे,में पुछेवं-कईसे कर डरे गा, ता कहत हे कांही नई होय हे, थोकिन बुखार धरे हवे,बने हो जाही, काय बने हो जाही १५ दिन ले खटिया धरे रिहिस अऊ १० हज़ार पईसा ला डाक्टर मन हा गोली दवई मा चुहक दिस, अपन गोठ मा अडेच रहिथे,डेरी गोड के अंगठा मा घाव होगे, सबो झन ओला किहिसे,इलाज कराले गा,ता वो हा कहे सब ठीक हो जाही सरीर हा अपने अपने अपन ठीक करथे,जब अंगठा हा बससाये ला धर लिस तभे डाक्टर करा गीस इलाज कराये बर,ले दे के ओखर गोड हा बांचिस,अईसन हमर पटवारी भईया के गोठ हे गा,काली कहत रिहिसे,अब महू ला डाक्टरी करे लागहि,पराकिरित चिकित्सा में अड़बड गुन जडी बूटी अऊ हवा पानी मा इलाज हो जथे तुमन मानौ नई,
संगी हो काली पटवारी भईया के डाक्टरी ला देखबो, आज के कथा के इही मेर बिसराम हे
आपकेसंगी हो काली पटवारी भईया के डाक्टरी ला देखबो, आज के कथा के इही मेर बिसराम हे
गंवैय्हा संगवारी
ललित शर्मा
अभंपुरिहा
6 Comments:
ई हड़ाह भाखा कहाँ की है ?
गिरीजेश जी ये हमारे छत्तिसगढ प्रदेश की राजभाषा छत्तिसगढी है,जिसमे अड़हा के गोठ का अर्थ है गांव के आदमी की बात,इसलिए मेरे ब्लाग का यही नाम है, आप अड़हा के गोठ पर आये आपको बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने पुछा तो सही कम-से-कम कि कंहा कि भाषा है ये ही आपका स्नेह हमारे लिए बहुत है, आपका पुन: स्वागत है।
हमको भी सिखाइए। ये तो भोजपुरी/अवधी से मिलती जुलती सी है।
अड़हा माने गाँव का आदमी। गोठ माने बात? बहुत सुन्दर और अर्थमय शब्द हैं दोनों !
गोठ गोष्ठी से बना क्या?
हां गिरेजेश जी उसी का गोष्ठ-गोष्ठी-गोठ असल मे छत्तिसगढी एक बोली है जो अब समग्र भाषा का रुप ले रही है, मै कई भाषाओं मे लिखता हुं उत्तर भारत की सभी बोलियो एवम भाषाओं मे एक दुसरे के शब्द बहुतायत मे मिलेंगे,अगर आप हरियाणा की बोली और छत्तिसगढ की दो बोलियों को समझे तो आपको उत्तर पश्चिम भारत की सभी बोलियां समझ मे आ जायेन्गी, अभी मै हि्न्दी-छत्तिसगढी,पंजाबी,हरियाणी मे लिख रहा हुं ब्लाग पर,
ललित भैया ये अड़हा के गोठ बने लगीस । अब अद्हा मन ला घलो बोले के स्वतंत्रता मिले हे ऐसे लगत हे कुछु परिवर्तन आवत हे ।
KA HOGE JEE HAMAN APAN BHAKHA LA
BANE PARYOG MA LAWAT HAN TA
KABAR AISAN TIPPANI HOWAT HE KE
BOLE KE SWATATRATA ABHI MILIS
MAGAR MAHRAAJ YE PATWARI BHAIYA LA
ACHCHHA DHARE HAW JEE
BANE LAGIS AAP MAN KE GOTH
HA GUTTUR GUTTUR
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