गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

छत्तीसगढ़ बनिस अपराधगढ़


का कहवं संगवारी, फ़ेर कहे बिगर नई रहे सकंव। छत्तीसगढ़िया सबले बढिया कहिथे। बढिया एखर सेती हे के कउनो ल तकलीफ़ नई दे। खाए बर नई रही त लांघन भूखन रही जाही फ़ेर काखरो घर मा चोरी डकैती करे बर नई जाए। जांगर तोड़ कमाथे अऊ भाजी-भांटा संग बासी-भात खा के अपन जिनगी ल चलाथे। काखरो संग लड़ई-झगरा करे बर घलो नई जानय। अपन आप मा मस्त रहिथे। फ़ेर जब ले छत्तीसगढ़ बने हे तब ले बइरी मन के नजर लग गे हे। चोरहा, डकैत, किडनेपर मन ह अपन बाहुबल ल देखाए बर छत्तीसगढ़ पहुंच जथे। सांत इलाका हे कहिकि समंदर के पानी मा पथरा फ़ेंक के लहर उठाए के परयास चालु हे।

कोन आवत हे, अऊ कोन जावत हे। काखर घर मा कोन सगा सौदर कोन गाँव ले आए हे तेखर आरो कोनो नई पावय। पहिले के जमाना मा काखरो घर मा कोनो सगा सौदर आ जाए त संझा के कोटवार ह पूछे बर धमक जाए के कोन आए हे, का नाव हे, कोन बूता म आए हे, कोन गाँव के आय? तहां जम्मो के मुसाफ़िरी दर्ज करके हफ़्ता म थाना म रपोट ल देवय। आज त राम राज चलत। कोनो भी गाँव अउ सहर मा आ के लूट पाट करके चल देथे। कोनो ह गम नई पाए। पुलिस ह डंडा धरे खड़े रहि जथे।

छत्तीसगढ़ ल युपी अऊ बिहारी मन ह चरागन बना डरे हे। चारों मुड़ा ले रेलगाड़ी मा चढ के आथे अऊ लूट पाट करके भाग जथे, जौन जिए खाए बर आए हे तौन मालिक बन जथे। दू चार बच्छर मा पईसा कोड़ी लूट-पाट के नेता घलो बन जथे। अऊ उही मन ल अगुवा मान ले जथे। चकचक बगुला कस उज्जर कुरता पैजामा पहिरे हाथ म मोबाईल धरे अऊ बड़े बड़े कार म चढे एमन ल देखे जा सकत हे। लूटम लूट मचे हे। कोनो माई बाप नईए। राजनीति के जम्मो खेल हे।

बिहारी मन छत्तीसगढ़ म रेलगाड़ी ल अपहरन करे के हिम्मत घलो कर डारिस। पुलिस वाला मन ला मार पीट के आरोपी ल छोड़ा के भाग गे। कोनो अमिताब बच्चन के फ़िलिम  कस किसा लगथे। आधा घंटा ले जम्मो ट्रेन ह गुंडा मन के चंगुल मा रहिस अऊ अतेक बेर म पुलिस ल पता घलोक नई चलिस। अब भाग गे त चारों मुड़ा खेत खार अऊ गाँव-गाँव के घर दुवारी मा खोजत हे। अतेक हिम्मत के काम बिना मिली भगत के कोनो नई कर सकय। अपराधी मन के होसला बुलंद होगे हे।

अइसन लगथे कि थोड़ समे बाद छत्तीसगढ ह छत्तीसगढ नई रहाय, अपराधगढ़ हो जही। अपराधी मन पुलिस ल धमकावत हे, मार पीट के घलो भाग जथे। गरीब गुरबा मनखे मन उपर केस दर्ज कर देथे। रिपोट लिखाए बर जाबे त रिपोट लिखे बर पेन-कागज मांगथे अऊ जांच मे आए बर पिटरोल खरचा मांगथे। जतेक भी दू लम्बर के धंधा चलत हे तौन मा जम्मो के हिसा बांटा बंधे हे। अपन-अपन हिसा ल पा डरिस तहां पब्लिक मरे के बांचय। का कहिबे संगी फ़ेर कहे बिगर नई रहे सकंव।

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

राजा नल बिपदा म परिस, भूंजे मछरी दहरा मा गिरिस


का कहिबे संगी फ़ेर कहेच बर परथे। गियानिक मन कहिथे के जिनगी मा ऊंच-नीच चलत रहिथे। अइसन कोनो परानी नई होही जौन कभु बिपदा म नई परे होही। अमीरी गरीबी अऊ सुख दुख जिनगी मा चलत रहिथे। फ़ेर सरकारी नाप जोख म गरीबी अऊ अमीरी जिनगी भर एकेच रहिथे। ऊंखर पैमाना ह नई बदलय। गरीब मनखे मन बर कईयो योजना चलत हे। जेखर फ़ायदा कोनो ल मिलत हे कोनो ल नई मिलत हे। सरकार ह गरीबी नापे पर डांड़ खीच डरे हे। तौने के हद म अवईया मन ल गरीबी रेखा म आगे कहिथे। तहां उंखर रासन कारड बनथे अउ सरकारी योजना के फ़ायदा ओला मिलथे।

अईसन नईए के मनखे हं जिनगी भर गरीब रहिथे या अमीर रहिथे। गरीबी-अमीरी के पैमाना ऊंखर कमई हे। जेखर मेरन खर्चा करे बर पईसा हे तौन अमीर अऊ जेखर मेरन जिनगी ल चलाए बर पइसा नईए तौन गरीब। गरीब ले अमीर बनना सुख देथे। पैसा ह बाढ़ते तहां चेहरा म अमीरी के रौनक आ जथे। फ़ेर अमीर ले गरीब होना बड़ घातक हो जथे। न जिए सकय न मरे सकय। ओ ह कतको कही दिही के गरीबी आ गे हे त कोनो माने ल तइयार नई होए। मनखे के जिनगी मा कभु अइसने टैम घलो आथे जब माटी ह सोन हो जथे त कभी सोन ह घलो माटी हो जथे।

सियान मन कहाय के पइसा ल त कुकुर नई खाए। फ़ेर मनखे ल जिनगी चलाए बर पईसा जरुरी हो जथे। सरकार के पैमाना ह मनखे के हद ला नापथे। एक बेर जेखर गरीबी रेखा म नाव लिखा त फ़ेर जिनगी भर बर लिखा गे। चाहे वो ह कमा के बिल्डिंग खड़े कर डरे, चाहे खेत खार बिसा डरे। एक झिन चीज बसत वाले मनखे घर गेंव त पक्की घर मा 2 रुपया किलो चांऊर वाला पीला बोरड लिखाए रहाय। एक झिन घर गेंव त ओ ह अपन बियारा म एक बत्ती कनेक्सन लगाए रहाय अऊ ओखर ले घर भर के लट्टू ल बारत रहाय। ट्रेक्टर अऊ फ़टफ़टी घलो घर मा माढे रहाय फ़ेर ओ ह गरीबी रेखा मा आए।

अऊ जौन सही मा गरीब हे तेखर मेरन गरीबी रेखा के परमान पतर नईए। का करही बपरा ह, जांगर तोर कमाही, अऊ खप जही। समय के मार ले राजा हरिश्चंद घलो नइ बांचिस। एक टैम अइसन आईस के बेटा के किरिया करम बर घलो मरघट्टी के खरचा नई रहिस। गरीब होगे बपरा ह। फ़ेर राजा के नाव त राजा हे। ओला कोन गरीब मानही। कहिथे न दंतला ह तरिया म बूड़त हे तौन ला देखईया मन हांसत हे कहात हे अऊ दंतला बेचारा बूड़ गे तहां जीव परान छूट गे।

एक ठिक गोठ ह सुरता आथे। गांव मा एक झिन मनखे फ़ांसी खा गे। काठी-माटी म जम्मो गांव वाला मन सकलाईस। कईस होगे? काबर कर डारिस अइसन अलहन बूता ल। थोड़ दिन पाछु गांव वाला मन आरो पाईन के ओखर मेरन पैइसा कौड़ी के जुगाड़ नई बैईठत रहिस। अऊ अपन सकऊल बूता खोजे त घलो नई मिलय। हलकानी मा जीवने ल सिरा डरिस। सगा अऊ हितवा-मितवा मन कहाए के हमला एको पईत घलो नई बताईस। एको बेर कही देतिस त काहीं कुछु जमाए दे रहितेन। बड़े भाग मानुस तन पावा।

अइसन दुनिया हे। कहिथे न राजा नल बिपदा म परिस, भूंजे मछरी दहरा मा गिरिस। टैम टैम के गोठ हे गौ, मनखे के इही समय परिक्छा के होथे। जब अतेक बड़ राजा के परिक्छा होगे त छोट-मोट मनखे के का मरजाद हे। सरकार ल गरीबी रेखा के घलो  पांच साला चुनई बरोबर चुनई कराना चाही। जौन सकऊल होगे तेखर नाव ल काटय अउ जौन ह ओखर गरीबी रेखा के खांचा म बैईठत हे तौन ल जोड़ना चाही। सरकार त सरकारे आए, जौन मन लागही तौन करही। मोर सलाह काए मानही। फ़ेर का कहिबे संगी, कहे बिगर रहे नई सकवं, केहेच ल लागथे। 

रविवार, 20 जनवरी 2013

बहिनी मन ल कब मिलही नियाव: गरभचोर डॉक्टर मन ला भितराव


का कहिबे संगी, फ़ेर कहे बिगर नई रहे सकंव। छोट-मोठ मनखे रहितिस त अभी तक ले जेल भीतरी होतिस अऊ ओखर जमानत लेवइया घलो नई मिलतिस। तेखरे सेती कहिथे न छोटे चोर ह चोर होथे अउ बड़े चोर ल साव कहिथे। अइसनहे हमर छत्तीसगढ मा होवत हे। छुट्टा घुमत हे हमर गांव-गंवई के बहिनी मन के गरभचोर डॉक्टर मन। गरभासय कांड के गए बछर जून के महीना मा भंडाफ़ोड़ होए रहीस। मीडिया म घलो चार दिन भारी हल्ला-गुल्ला मचिस। तहां ते आज तक काहीं सोर-खोर नईए। सरकार ह डॉक्टर मन के कमेटी बनाईस। कमेटी ह जांच करही तहां गरभचोर डाक्टर मन ला थाना अउ जेल मा धांधबो कहिन

9 झिन डॉक्टर मन के लायसेंस ला निलंबित करीस अउ एक हफ़्ता मा ऊंखर मन के लायसेंस के निलंबन ला खतम कर दिस। जाओं फ़ेर काटव पीटव और धकाधक पैसा कौड़ी झोर के गंवइहा मरीज ला नंगरा करव, ऊंखर खेती-खार ला बेचवाओ। ईंखर मन के नर्सिंग होम वईसनहे चलत हे जैइसन पहीले चलत रहिस। कोनो रोक टोक नइए, दूनो डउकी-डउका डॉक्टर हे, दोनो झिन के लायलेंस ल थोरे जप्ती कर दिही। इंखर मन के धंधा चलत रही भेले जेन बहिनी मन के गरभ निकाले रहिस तौन मन पीरा मा मरत रहाय। शरीर के संग पैसा कौड़ी के घलो नकसान होगे। आठ महीना होगे, ईंखर उपर कोनो कारवाही नई होना संदेह के कारज बनत हे।

का करबे संगी कहेच ला लागथे। डॉक्टर मन के काम मनखे के बीमारी दूर करना हे। भगवान के पाछू डॉक्टर मन ल जीव परान बचईया देंवता मानथे। अपन परान ल ऊंखर हाथ मा संऊप के आंखी ला मूंद देथे। मरीज बांचगे त डॉक्टर के जय-जय अऊ मरगे त भगवान ल दोस। डॉक्टरी जैइसे सेवा ल घलो धंधा बना डारिन। गाँव-गाँव मा मितानिन मन ला फ़ोकट म मोबाईल फ़ोन बांटिसअऊ कमीसन के धंधा अइसन चलाईस के खल-खल के गांव भर के बहिनी मन के गरभासय ला निकाल के फ़ेंक डारिस अऊ ऊंखर स्मार्ट कार्ड के जम्मो रुपिया पैसा ल चुहक डारिस। मरीज मन के पैइसा ल फ़र्जी तरीका ले निकाल डारिस। अउ फ़र्जी काम करईया डॉक्टर मन उपर कोनो अपराध दर्ज नई होईस।

जेन पइसा ल डॉक्टर मन हड़पिस तौन पईसा हमर आम जनता के पैइसा हे। जौन टैक्स हम सरकार ला देथन तौन पईसा हे। काखरो ददा घर के बांटा नईए। आम जनता के पैइसा के खुले आम चोरी ए, समझबे त सोज्झे डकैती आए। जम्मो ह सरकारी अस्पताल के डॉक्टर मन के मिली भगत के बिना नई हो सकय। जम्मो ब्लॉक के बीएमओ मन जानथे, काखर अस्पताल म काए होवत हे तेला। फ़ेर पैइसा पा के उहु मन आंखी ला मुंद देथे। सरकारी अस्पताल मा मरीज मन के कोनो सुनइया नईए, कोनो जगा डाक्टर मिल जथे त दवई नई मिलय। दवई मिल जाही त डॉक्टर नई मिलय। करही त काय करही गरीब मनखे ह।

सरकारी अस्पताल के डॉक्टर मन पराईवेट अस्पताल डहर मरीज ल जोंग देथे। सरकारी अस्पताल मा बने ईलाज नई होए कहिके पराईवेट अस्पताल मा मरीज मन जाथे त ऊंहां खुन पेसाब के जांच करईया ले लेके मेडिकल तक जम्मो मन के कमीसन बंधे हे। गरभासय कांड के डॉक्टर मन ह त फ़र्जी आपरेसन करके पैईसा ला निकालिन फ़ेर सहर के एक झिन बड़े डॉक्टर ह ईंखर मन के बबा-ददा निकलगे। ए डॉक्टर ह त बिन आपरेसन करे, बिन सुजी दवई दिए गरीब मन के स्मार्ट कार्ड के पैईसा ला चोरा के भाग गे। तेखर आरो अभी तक ले पुलिस ह नई पाए हे। हाय पैइसा, हाय पैइसा लगे हे ए मन ला। कोन जानी ईंखर मन उपर कब कार्यवाही जेखर ले गरीब गुरबा मन ला नियाव मिलही। का कहिब ग, करलई हे, फ़ेर कहे बिगर रहे नई सकंव।       

शनिवार, 19 जनवरी 2013

का कहिबे संगी गोठ ल


का कहिबे संगी, फ़ेर कहे बिगर रहे नइ सकंव, कहेच ल परही। जंगल-जंगल झाड़ी-झाड़ी पता चला है कहिथे। काय पता चला है भगवान जाने। फ़ेर जौन मोला पता चले हे तौन ला मीही जानथौं। रोज दिन के फ़ट-फ़ट होगे हे। बाबू के दाई कहिथे गैइस के सलिंडर ह मांहगी होगे हे। जम्मो पईसा त ईही ला विसाए में सिरा जथे। अऊ तैं हां निठल्ला साहितकार बने हस। काम के न कौड़ी के, पइसा के न बोड़ी के। कहां ले लानबो अतेक मांहगी सलिंडर ला। कांही उदिम करे रहितेस त बने रहितिस। टुरा हां घलो सिक्छाकर्मी के हड़ताल करके बरखास्त होगे हे। काहीं कुछु भुति पावत रहिस, दूधो गए दुहनो गए। मैं काय बताओं अपन पीरा ला। अजादी के बेरा मा अंगरेज मन के मार मा जतका हमर पुरखा मन के देंह नई कल्लाए होही, उंखर ले जियादा बाबु के दाई के ताना मरई मा दंरर जाथवं।

का कहिबे संगी, ओ हं समझथे के मीही सरकार आंव, मोरे बढाए ले जिनिस मन के रेट ह बाढथे अउ मोरे घटाए ला घटथे। काखरो मेरन गोहार पार लेवं, कोनो सुनईया नइए। जम्मो नेता मन कई पहारो के खाए बर ओइलाए मा भिड़े हे। केरा ला छिलका सुधा भकोसत थे अउ कुसियार ला सोज्झे चुहकत हे। पहीले के टैम मा जंगल ले आड़ी-झाड़ी लकड़ी लाने अऊ भात-साग जम्मों जेवन हां चुर जाए। सरकार ह परचार करे लागिस गैस के सलिंडर ला बिसाव, जंगल काटे ले हानि होवत हे। परयावरण ह जतर-कतर हो जथे, जंगल के काटे ले। अब गैस के सलिंडर ला बिसा डरे हन त रोज्जे ऊंखर कीमत ला बढावत हे। गाँव-गाँव मा बहु मन सुखियार होगे। जंगल, खेत-खार ले कोनो लकड़ी लाए बर नइ जाए। गैइस के सलिंडर नइए त चुल्हा के तीर मा कोन्हो नइ ओधय।

सास ह चुल्हा मा रांधे बर कही दीही त कोट कछेरी के मामला हो जही। जंगल ले लकड़ी लानबे त जंगल के साहब मन जुलुम करत हे, केस बना देथे। डीपो ले बिसाबे त ऊंहा लकड़ी के दुकाल पर गे हे। कोन्हो सुनइया नइए हमर मन के। हमर जंगल, हमर झाड़ी, हमर बाड़ी, हमरे नइए, सरकारी होगे हे। अइसन लागथे चारों मुड़ा ले धंधा गेन। जब ले गैइस आए त पता घलो नई चलय काखर घर मा खाए बर हे अउ काखर घर लांघन। पहीली के बेरा मा बिहनिया अउ संझा बेरा मा घरो-घर के छानी मां धुंगिया माड़ जाए रहाय।  त आरो हो जाए के काखर घर मा आगी बरत हे अउ काखर घर के लईका मन लांघन सुते के तियारी  मा हवे। कोन्हो न कोन्हो अरोसी-परोसी मन एको पइली चावंर ला अमरा दे त ओखरो घर चुल्हा बर जाए अउ लांघन सुते के नौबत नइ रहाय। अब 35 किलो चांवर ला रांधे चुरोए बर न गैइस हे न जलाऊ। काला कहिबे ग, करलइ हे, फ़ेर कहे बिगर रहे नइ सकंव। 

ललित शर्मा

बुधवार, 14 जुलाई 2010

सुंदरी बनगे भंइसी मेंछरावत हे, संसो में ठेठवार परान सुखावत हे--बियंग


हमर राम जी ठेठवार बइहाय हवे, बिहनिया ले तेंदुंसार के लौड़ी धर के किंजरत हे। मैं हां टेसन कोती जात रहेवं त भेंट पाएंव। सोचेंव के बिहनियाच ले मिल गे साले हां पेरे बर। महुं कलेचुप रेंगत रहेंव, झन देखे कहिके, फ़ेर देख डारिस बु्जा हां।

"महाराज! पाय लागी, रुक देंवता रुक, गोड़ ला धरन दे।" अइसने कहिके गोड़ ला धर लिस लुवाठ हा।

"खुस राह, जय हो, राम जी, कैसे बिहनियाच-बिहनिया ले भट्ठी डहार आगे"

"का बताओं महाराज! हमर घर मेरन एक झिन मास्टर रेहे बर आए हवे, बने पढे लिखे होशियार हे, ओखरे चक्कर मा पर गेंव, अलहन होगे महाराज-तिंही कुछु कर त मोर संसो हां हेरावे"

"अरे गोड़ ला त छोड, जम्मो हां देखत हे साले, बिहनिया ले दारु पी के फ़जीता करत हस"

"नई छोडवं गोड़ ला, पहिली मोर गोठ ला सुन, अउ मोर समस्या ला दूर कर"

"छोड साले गोड़ ला, तमासा लगाए हस टेसन मा, गोड़ ला छोडबे त सुनहुं मे हां" अइसे कहेवं त मानिस बुजा अउ गोड़ ला छोडिस।"

"का बताओं महाराज! पंदराही पहिले मास्टर हां पेपर पढत रहिसे त मैं पुछ डारेव काय पढत हस गुरुजी कहिके। त गुरुजी किहिस-"राम जी तोरे लायक बुता हवे, तोर डेरी मा एक ले एक बने सुंदर भैंसी हवे अउ बने बम्बई मा भैंसी मन के ब्रह्माण्ड सुंदरी प्रतियोगिता होवत हवे, तहुं अपन एको ठिक भैंसी ल साज संवार के भेज दे, जीत जाही त बने इनाम मिलही, पेपर मा तोर अउ भैंसी के फ़ोटो छपही, बने डेरी के गिराहकी बढ जही, तोला चंडी बांटे ला नइ लागे जम्मों हां इंहच्चे ले आ के दुध ले जाही।"

"त फ़ेर काय होइस गा-आघु बता मोला तुरते जाना हे, गोठ ला लमा झन जजमान अवैइया हे।"

"मास्टर ला पुछेंव त उहां जाए बर काय करे ला लागही, त ओहां बताईस तोर भैंसी ला बने धो मांज के रखे कर 10-15 दिन मा एकदमें चिकना जाही, मोर जमना मुर्रा भैंसी हवे, बने कर्रु-कर्रु आंखी के, कटारी नैना, देखथे तौने हां दीवाना हो जाथे, बने रोज बिहनिया अउ संझनिया फ़ेयर अन्ड लवली चुपरंव, बने गोरियागे रहिस। तहां ओ ला बम्बई पठोएं बरातु संग। कहिथे के ब्रह्माण्ड सुंदरी बने बर जाथे तेखर संग एक ठिक मनेजर घला पठोए ला लागथे, ओखर देख रेख जतन करे बर। बरातु हां ओखर पानी कांजी के बेवस्था करही, अउ एक ठिक झोलंगा पेंट, काय कहिथे टुरा मन, बरमुड़ा, हां! बरमुड़ा तैसने घला सिलाए हवे। कांहि स्टेजे मा छर्रा मार के पुंछी ला हला दिस त हो गे सत्यानाश । अब भैंसी हां त चल दिस महाराज ।

"ले बने होगे, इनाम झोंक के आही त उही पैसा दु-चार ठिक भैंसी अउ बिसा लेबे। त एमा काय संसो होगे तोला।"

"तैंहा संसो कहत हस, मोर जीव परान छुटत हे, हमर नाती हां पढैया हवे, ओ हां बताइस के जौन हां ए सुंदरी प्रतियोगिता मा चल देथे तौन हा, लहुट के नइ आवै, मनेजरे संग मसक दे थे। अउ उंहा त रंग-रंग के पड़वा अउ भैंसा आथे, कहीं काखरो संग मसक दिस त मोर काय होही। अउ लहुट के आगे त दुहाय नहीं, फ़िगर खराब हो जाही कहिथे। अब बता काला फ़िगर कहि्थे तेला मैं काय जानवं। जब ले सुने हंव अइसने तब ले बुध हां काम नई करत हे पी-पी के गिंजरत हंव अउ तोला खोजत रहेंव।

"त एमा मै काय कर सकथौं?"

"तैंहा महाराज बम्बई आत-जात रहिथस, मोर भैंसी ला लहुटा देतेस, मोला नई बनाना हे ब्रह्माण्ड सुंदरी, हाय मोर जमना! तोर जाए ला कोठा पर गे हे सुन्ना। ला दे महाराज मोर जमना ला, आही त ओखर बर 10किलो फ़ेयर एन्ड लवली अउ 5किलो लिपिस्टिक बिसाहुं, भले कर्जा हो जाही फ़ेर ओखर गोल्डन फ़ेसियल करवाहुं,बने आई ब्रो ला कमान कस बनवाहूँ, एक दम सजाहुं भगवान, एक दम सजाहुं।

"ले सुन डरेवं तोर गोठ ला, जा घर जा, मैं हां तोर जमना ला लाए के उदिम करत हंव, अउ बिहनिया ले पी-पी के झन किंजर, बने जा के सुत। तोर जमना हां आ जाही।"

"ले मैं जात हंव महाराज, फ़ेर मोर जमना हां दुहाय नहीं कहिथे, इंहा रिहिस त दु टैम के 15 किलो दुहात रहिसे, एकदमे नुकसान हो जाही गा।"

"भैंसी चाहे कोठा के होय या ब्रह्माण्ड सुंदरी, ओ हां जिहां रही उहां ओला दुहायच ला परही। इंहा त तैं एके झन दुहैया हस, बाहिर मा त नाहना डोरी धर के अड़बड़ पहाटिया मन गिंजरत रहिथे, कौनो भैंसी पातेन त दुहतेन, ले तैं जा महुं जात हवं, मोरो जजमान के आए के बेरा होगे हे।" अइसे कहीके महुं रेंग देंव।---

शुक्रवार, 19 मार्च 2010

नव रात्रि मे अद्बुत माता सेवा गीत--धरोहर------------ललित शर्मा

मर 36 गढ के मा गांव जंवारा बैठाए हे जौन हा मानता माने रिहिस तौन हा, संझा के सेवा वाला मन के मांदर अउ झान्झ मंजीरा बाजथे त बड़ सुग्घर लागथे। जैइसन जैइसन ताल के गति बाढते तैसन तैसन गोड़ हां नाचे ला घरथे, अउ गोड़ के नाचे के गति हां घला बाढ जाथे।संगी हो आज आप मन बर माता सेवा के एक ठीक गीत ला प्रस्तुत करत हंव्। ये दे गीत ला हमर गांव के सेऊक मन गाथे, कोन लिखे हे तेला मै हां नइ जानव।


चंडी कहिथे, दुर्गा कहिथे, शीतला कहिथे ओSSSSS
कोनो तोला काली, बमलाई महमाई कहिथे ओSSSSS

हाथ जोड़ के बिनती करत हे,लागौं तोर पैंया ओ दाई
नर मुंडन के माला पहिरे,आदि शक्ति मैया ओ दाई,

जय अम्बे, अम्बिका भवानी, शक्ति कहिथे ओSSSS
कलकत्ता के काली माई, डोंगरगढ के बम्लाई ओSSS
कवर्धा मे विन्ध्यवासिनी,गंडई के गंगाई ओSSSSS

सतयुग,त्रेता, द्वापर,कलयुग,नाम अनेक धराए,
पापी मन के नास करे तैं,भक्तन के लाज बचाए

बीना बजैया, विद्या देवैया, सरस्वती कहिथे ओSSSS
चंडी कहिथे, दुर्गा कहिथे, शीतला कहिथे ओSSSSS

ललित शर्मा

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

सुभीता खोली के नवा चिंतन !!!

संगी हो जोहार लेवो,

अड़बड बेर होगे कुछु लिख पढ़ नई पाए हंव, काबर के लिखे के सुभीता नई मिलिस. चलो आज सुभीता के सुरता होगे ता ऐखरे  उपर चर्चा कर जाये. हमर एक झिन मयारू मित्र हे सूर्यकांत गुप्ता जी, जौउन हा बने-बने गोठ ला गोठियाथे. एक दिन हमन फोन मा गोठियात रहें ता वो हा किहिस "ये दे सुभीता खोली  के बेरा होगे महाराज, अब मै  जात हंव". ता महू संसो मा पर गेंव, काला "सुभीता खोली" कहत हे. पुछेंव ता "लेटरिंग खोली" के नांव सुभीता खोली धरे हंव किहिस. हे भगवान कहिके माथ ला धार डारेंव, ओखर बाद  महू सोच मा पर गेंव, अऊ मोर चिंतन अब सुभीता खोली डाहर चल दिस. हमर जीवन मा सुभीता खोली के महत्वपूर्ण स्थान हवे, ता मैं हिसाब लगायेंव के एक मनखे हाँ रोज सुभीता खोली ला १० मिनट देते ता एक महिना मा ३०० मिनट अऊ एक साल मा 36 सौ मिनट होगे अऊ ओकर उमर के औसत निकालबे ता जियादा ले जियादा ६० साल जियत हे ता २१६००० मिनट याने १५० दिन देते, अऊ इही १५० दिन मा अपन जिनगी के महत्वपूर्ण निर्णय ला लेथे, जब मनखे हाँ  सुभीता खोली मा रहिथे  ता एक से एक विचार उमड़-घुमड़ के डीमाग मा आथे. कभू-कभू अईसन होथे के जिनगी के सबले जरुरी फैसला उपर मुहर सुभीता खोलीच मा लग जथे.  
बड़े-बड़े साहितकार मन अपन उपन्यास के प्लाट ला सुभीता खोली मा सोच डारथे अऊ बैठे-बैठे जम्मो कहानी गढ़ डारथे. सुभीता खोली के चिंतन मा नवा-नवा गीत, कविता, ददरिया के जन्म हो जथे. अऊ उही हाँ हिट हो जथे. हमर एक झिन नामी साहितकार हाँ एक बेर मोला एखर महत्त्व के बारे में बताये रिहिस ता मैं हाँ धियान नई दे रेहेंव. एक दिन महू हा टीराई मार के देखेंव ता जौउन कविता के सुभीता खोली मा जन्म हुईसे तेहाँ हिट होगे. तब ले सुभीता खोली के बने उपयोग ला मै करथंव, पहिले कविता ला लिखँव ता संपादक मन हा " कृपया भाव बनाए रखें, आपकी कविता बहुत अच्छी है लेकिन हम इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. आप अन्यत्र उपयोग कर सकते हैं" अईसने लिख के सादर वापस भेज देवे. ता मोला बड अलकरहा लगे. अतेक मेहनत  करके लिखबे अऊ अपने कविता ला कौउनो "अन्यत्र उपयोग" करे के स्वतंत्रता दे थे, ता सुन के जिव हाँ कौउवा जथे. लेकिन जब ले सुभीता खोली के चिंतन चालू हुईसे, तब ले ये समस्या के निवारण होगे. काबर के मैं नई जानत रेहेंव के जतका पत्र-पत्रिका वाले संपादक मन हे जम्मो हाँ सुभीता खोली के चिन्तक हवे. अब दरुवाहा संग दरुवाहा हो जाबे, तभे तोर गोठ हाँ ओखर समझ मा आही अऊ डीमाग हाँ पुरही, ता एखर मरम ला मैं जान डारेंव अऊ सुभीता खोली के चिन्तक संपादक मन मोर कविता ला समझे ला धरिस अऊ समझ के छापे ला धरिस.
सुभीता खोली के महिमा के जतका बखान करबे ओतके कमती हवे. एक बेर में हाँ मकान बनावत रेहेंव, अब इंजिनियर ला ब्लाबे अऊ नक्शा ला बनवाबे ता आनी-बानी के फ़ीस ला मांगथे, ता मैं हाँ सोच डारेंव हमू ता पढ़े लिखे हन, हम हा काबर नक्शा ला नई बनाये सकन, अईसे सोच के नक्शा ला मीही बनायेंव अऊ ठेकेदार ला बला के नींव के चिन्ह दे देंव, मकान के काम-बुता चालू होगे. नींव के बाद चौखट हाँ घलो चढ़गे, मकान मा पानी छित के मैं हाँ सुभीता खोली मा गेंव, ता बईठे-बईठे सोचेंव के तीन ठिक मुहाटी हाँ एके लैन माँ होगे अऊ वास्तु शास्त्र के हिसाब से पाछू पेरही, ता सुभीता खोली के चिंतन हा स्थायी काम करिस. सुभीता खोली ले निकल के तुरते दू ठिक चौखट ला ठेकेदार के आये ले पहिली गिरा डारेंव, अतका काट करिस सुभीता खोली के चिंतन हाँ. संगी हो इहु चिंतन हाँ सुभीता खोलीच ले निकल के बहिर आये हवे. आप मन ला कईसे लागिस बताहू. 
 

ता भैया हो ये दे हाँ मोर सुभीता खोली के चिंतन रिहिस, कईसे लागिस थोकिन टिपिया के बताऊ, अऊ सुभीता खोली के गोठ ला अऊ कौनो दिन फेर गोठियाबो.

आप मन के गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा अभनपुरिहा

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