गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

सुभीता खोली के नवा चिंतन !!!

संगी हो जोहार लेवो,

अड़बड बेर होगे कुछु लिख पढ़ नई पाए हंव, काबर के लिखे के सुभीता नई मिलिस. चलो आज सुभीता के सुरता होगे ता ऐखरे  उपर चर्चा कर जाये. हमर एक झिन मयारू मित्र हे सूर्यकांत गुप्ता जी, जौउन हा बने-बने गोठ ला गोठियाथे. एक दिन हमन फोन मा गोठियात रहें ता वो हा किहिस "ये दे सुभीता खोली  के बेरा होगे महाराज, अब मै  जात हंव". ता महू संसो मा पर गेंव, काला "सुभीता खोली" कहत हे. पुछेंव ता "लेटरिंग खोली" के नांव सुभीता खोली धरे हंव किहिस. हे भगवान कहिके माथ ला धार डारेंव, ओखर बाद  महू सोच मा पर गेंव, अऊ मोर चिंतन अब सुभीता खोली डाहर चल दिस. हमर जीवन मा सुभीता खोली के महत्वपूर्ण स्थान हवे, ता मैं हिसाब लगायेंव के एक मनखे हाँ रोज सुभीता खोली ला १० मिनट देते ता एक महिना मा ३०० मिनट अऊ एक साल मा 36 सौ मिनट होगे अऊ ओकर उमर के औसत निकालबे ता जियादा ले जियादा ६० साल जियत हे ता २१६००० मिनट याने १५० दिन देते, अऊ इही १५० दिन मा अपन जिनगी के महत्वपूर्ण निर्णय ला लेथे, जब मनखे हाँ  सुभीता खोली मा रहिथे  ता एक से एक विचार उमड़-घुमड़ के डीमाग मा आथे. कभू-कभू अईसन होथे के जिनगी के सबले जरुरी फैसला उपर मुहर सुभीता खोलीच मा लग जथे.  
बड़े-बड़े साहितकार मन अपन उपन्यास के प्लाट ला सुभीता खोली मा सोच डारथे अऊ बैठे-बैठे जम्मो कहानी गढ़ डारथे. सुभीता खोली के चिंतन मा नवा-नवा गीत, कविता, ददरिया के जन्म हो जथे. अऊ उही हाँ हिट हो जथे. हमर एक झिन नामी साहितकार हाँ एक बेर मोला एखर महत्त्व के बारे में बताये रिहिस ता मैं हाँ धियान नई दे रेहेंव. एक दिन महू हा टीराई मार के देखेंव ता जौउन कविता के सुभीता खोली मा जन्म हुईसे तेहाँ हिट होगे. तब ले सुभीता खोली के बने उपयोग ला मै करथंव, पहिले कविता ला लिखँव ता संपादक मन हा " कृपया भाव बनाए रखें, आपकी कविता बहुत अच्छी है लेकिन हम इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. आप अन्यत्र उपयोग कर सकते हैं" अईसने लिख के सादर वापस भेज देवे. ता मोला बड अलकरहा लगे. अतेक मेहनत  करके लिखबे अऊ अपने कविता ला कौउनो "अन्यत्र उपयोग" करे के स्वतंत्रता दे थे, ता सुन के जिव हाँ कौउवा जथे. लेकिन जब ले सुभीता खोली के चिंतन चालू हुईसे, तब ले ये समस्या के निवारण होगे. काबर के मैं नई जानत रेहेंव के जतका पत्र-पत्रिका वाले संपादक मन हे जम्मो हाँ सुभीता खोली के चिन्तक हवे. अब दरुवाहा संग दरुवाहा हो जाबे, तभे तोर गोठ हाँ ओखर समझ मा आही अऊ डीमाग हाँ पुरही, ता एखर मरम ला मैं जान डारेंव अऊ सुभीता खोली के चिन्तक संपादक मन मोर कविता ला समझे ला धरिस अऊ समझ के छापे ला धरिस.
सुभीता खोली के महिमा के जतका बखान करबे ओतके कमती हवे. एक बेर में हाँ मकान बनावत रेहेंव, अब इंजिनियर ला ब्लाबे अऊ नक्शा ला बनवाबे ता आनी-बानी के फ़ीस ला मांगथे, ता मैं हाँ सोच डारेंव हमू ता पढ़े लिखे हन, हम हा काबर नक्शा ला नई बनाये सकन, अईसे सोच के नक्शा ला मीही बनायेंव अऊ ठेकेदार ला बला के नींव के चिन्ह दे देंव, मकान के काम-बुता चालू होगे. नींव के बाद चौखट हाँ घलो चढ़गे, मकान मा पानी छित के मैं हाँ सुभीता खोली मा गेंव, ता बईठे-बईठे सोचेंव के तीन ठिक मुहाटी हाँ एके लैन माँ होगे अऊ वास्तु शास्त्र के हिसाब से पाछू पेरही, ता सुभीता खोली के चिंतन हा स्थायी काम करिस. सुभीता खोली ले निकल के तुरते दू ठिक चौखट ला ठेकेदार के आये ले पहिली गिरा डारेंव, अतका काट करिस सुभीता खोली के चिंतन हाँ. संगी हो इहु चिंतन हाँ सुभीता खोलीच ले निकल के बहिर आये हवे. आप मन ला कईसे लागिस बताहू. 
 

ता भैया हो ये दे हाँ मोर सुभीता खोली के चिंतन रिहिस, कईसे लागिस थोकिन टिपिया के बताऊ, अऊ सुभीता खोली के गोठ ला अऊ कौनो दिन फेर गोठियाबो.

आप मन के गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा अभनपुरिहा

शनिवार, 5 दिसंबर 2009

रिकिम रिकिम के साहित सेवा अऊ, भोभला बर चना चबेना

संगी हो जय जोहार,


मैं हाँ दू चार दिन पहिले ये बुलाग के सेवा ले हवं. एखर ले पहिले में हाँ नई जानत रहेवं काला बलाग कथे, जानेवं ता महूँ हाँ अपन गोठियाये के खजरी ला मेटाए बर ये दे बूता ला कर डारेवं, मोर डिमाग ले बुलाग के बूता हाँ बुलाग कम, बुलक दे जियादा हवये, हमन हांना कथन ना "मार के टरक दे अऊ खाके सूत जा" तईसने बूता बुलाग के हवे. अपन गोठ ला गोठिया ले तहां काखरो झन सुन. ओ कोती मूड ला पटकन दे. अऊ एक ठन नवा जिनिस देखेवं, इंहा रिकिम-रिकिम के साहितकार हवय, कई झन ता अलकरहा घलोक हे, रात दिन जागते अऊ लिखत रहिथे पढ़त रहिथे, मोला ता लागथे रात के घुघवा हाँ घलोक सूत जात होही पर ये मन नई सुतय, एखर मन के किस्‍सा कहिनी हा रात भर चालू रहिथे, मोर डिमाग हा नई पुरय. रंग-रंग के नावं हवय, कुकुर बिलाई मन के नावं हा घला नई बांचे हे उहू ला धर डारे हवय, में हा इंहा आके अडबड गियान पायेवं.


साहितकार ओला कथय जेन सब के हित ला सोचय, जम्मो समाज के हित के चिंता करे, साहितकार मन के गोठ हा दिन रात चलत रहिथे, कहिथे ना "बईला ला बांध दे घाट मा, अऊ..........ला फांद दे बात मा." अइसनेच बूता हवय जान लुहू गा. हमर गाँव मा घलो एक झन साहितकार हवय, में हा घर ले निकलेवं ता ओला भेंट पायेवं राम-राम जोहार होईस ता पुछेवं कहाँ जात हस गा बिहनिया-बिहनिया झोला धर के, ता वो हा किहिस - का बताववं गा एक ठक गीत लिखहूँ सोचत हंव त घर मा लईका मन उतलईंन करत हे, हांव-हांव के मारे सबे मामला हा गड़बड़ हो जथे, त बांधा पार में बइठ के लिखहूँ, उन्हचे बने  विचार मन उमड़ थे, मै कहेवं बने साहित के सेवा करत हस गा अइसने होना चाही.


एक दिन टिरेन मा बिलासपुर ले आवत रहेंव त मोर सीट के पाछू मा एक झन मनखे हा जोर लगा लगा के कंही पढ़त रिहीस, दू चार ठन टूरा मन जुरियाये रिहिसे, गोठ ला सुन के महूँ हा लहुट परेवं, देखेंव त उहू साहितकार रिहीस ,याहा रोठ के डायरी ला धरे रहय अऊ कविता पढ़त रहय, इहु एक ठक साहित सेवा हवे, में हा पुछेवं, का बाबा टिरेन मा घला कबी समेलन चलत हे, ता वो हा किहिस-काखर अगोरा करबे के तोला कबी समेलन म बलाही अऊ परघा के तोर आनी-बानी के गीत अऊ कविता ला सुनही, ये बेरा मा सरोता मन घलोक हुसियार हो गे हवय, तैं कविता पढ़े ला चालु करबे तो बैईठ  बैईठ कहिके नरीयाथे, तेखर  इही बने १० रूपया के टिकिस कटा लोकल मा, अऊ अपन कविता के पाठ ला चलन दे ,सरोता घलो मिल जाते अऊ कोनो बोरियाथे,  ते हा आघू  टेसन मा उतर घला जथे, मोला अऊ नवा सरोता मिल जथे, सबले बढ़िया मोला इही मंच हा लागथे, मैं  कहेंव धन्य हस बबा तेहां अतक बड बलिदान साहित बर देवत हस.


हमर तिवारी गुरूजी हवय तहां लकठा के इस्कूल में पढाये बर जाथे, ओखर इस्कूल के पाछू मा एक ठक कुंवा हवय, कुंवा हा सुक्खा हवय, कोई १५ हाथ के होही, खाए के छुट्टी के बेरा मा एक बिदयार्थी हा कुंवा मा गिर गे, इस्कूल के छुट्टी होय के बेरा मा गुरूजी हा देखिस एक झन टूरा के बसता हा माढे हवय, अऊ टूरा हा गायब हे, ओला खोजिस, नई पाईस त कुंवा डहार ला देख लौं कहिके गिस, गुरूजी कुंवा मा झांकिस त टूरा हाँ कुंवा मा रिहीस,टूरा हाँ कुंवा में रिहीस अऊ गोटी पथरा ला बल भर उपर डाहर फेंकय, अब ओला हेरे के संसो पर गे गुरूजी हा, सोंचिस लुवाई के टैम चलत हे जम्मो  झन खेत खार मा जाये रहिथे कोन ला बलावं? तभे सुरता आइस गावं में एक झन "बिमरहा" नावं के कवी साहितकार रहिथे, वो हा सिरतोन मा बिमरहा नई ये, कवि बनिस त नावं खोजिस, कोनो नावं नई मिलिस, काबर के सबो नावं ला अऊ कवी मन पोगरा डारे हे त मेहा इही बिमरहा नावं ला धर डरत हवं, अइसे करके ओखर नावं हा बिमरहा परगे, ठेलहा उही मिलही, चल उही ला बलावं, टूरा ला कुंवा ले हेरे मा मदद करही, कहिके गुरूजी ओखरे मेर चल दिस, बिमरहा देखिस गुरूजी आये हवय कहिके खुस होगे, गुरूजी हा अपन पीरा ला बताइस, त बिमरहा कहिथे ये दे गुरूजी बने होगे ते आगेस त अभीच्चे एक ठन नवा गीत लिखे हवंव, थोकिन सुन ले फेर टूरा ला कुंवा ले हेर देबो, अभी वो हा बने सुरकसित जगा में हवय, कांही संसो के बात नईये, जब गुरूजी ओखर खोली मा खुसरिस त देखिस पांच पन्ना के गीत, गुरूजी के ......................गे, अब नई बांचवं दादा कहिके, गीत ला सुनिस अऊ टूरा ला कुंवा ले हेरिस, अइसने घला साहित सेवा होथे.
अब बिसराम दव संगी हो,

जम्मो ला मोर राम-राम जोहार .
आपके गंवईहा संगवारी

ललित शर्मा

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

चित्रगुप्त हा घेरी-बेरी जोजियावत हे, यम के भंइसा अब ब्‍लाग बनावत हे.

जमराज हा चित्रगुप्त ला रात के बने चेता के सुतिस के मोर भैंसा ला बने खवा पिया के सुग्घर मांज धो के राखहु, काली मोला मुंधरहाच ले कोरट जाना हवय भुलाहु झन, चित्रगुप्त हा जम्मो नौकर मन ला चेता के ऊहु हा सुते ला चल दिस, ऍती बिहनिया हुईस ता जमराज हा कोरट जाये बर तेयार होगे, चित्र गुप्त ला पुछिस सब तेयार हे ,चित्र गुप्त किहिस हा महाराज, जा एक बार अऊ देख के आबे कहिके पठोईस,चित्रगुप्त कोठा मा गिस ते जम्मो नौकर मन मुह ला लमाय रहय,पुछिस-का होगे मेहतरू मुह ला कैसे ओदारे हव, मेहतरू किहिस महाराज मुंधरहाच ले बने भैंसा ला खवा पिया के मांज धो के तेयार करके रखे रेहेवं,तभे रानी बाई के पानी भरे के बुल्ल्वा आगे ता उहाँ चल देवं आके देखेवं ता भैंसा हा नई ये,सबे पहटिया मन ला खोजे ला भेजे हवं,कईसे करना चाही तीही बता, बडे महाराज कहिबे ता नरक मा भेज दिही तहां होगे हमर बुता हा, जाओ जल्दी खोज के लाओ तुमन भैंसा ला तलघस ले महाराज के गुस्सा ला मै मडहाय के उदिम करत हवं, जम्मो नौकर मन भैंसा ला खोजे ला धरिस.खेत-खार बारी-बखरी,गावं-खोर ला उत्ता धुर्रा खोजे ला भिडे रहय,जम्मो हा हलाकान होगे, ऍती महाराज हा घेरी-बेरी चित्रगुप्त ला पूछे -का होगे गा मोर सवारी नई आये हवय?अऊ मोर कोरट जाये के टैम होवत हे,ये दे अईसने होथे जब काहीं अलकरहा काम रहिथे ता साले मन अईसनेच करथे,भेज तो सब्बो ला रौरव नरक मा, ऊहचे सुधरही बूजा मन इंहा रिकिम-रिकिम के खा-खा के मोटागे हवय, चित्रगुप्त किहिस-रिस झन कर महाराज.वो मन आतेच होही, भैंसा के हाथ गोड मा गोबर-ओबर लेगे रहिथे तेला धोये मांजे थोकिन बेर हो जथे, जाओ जल्दी लाये के बेवस्था करव-जमराज हा किहिस.

ऍती भैंसा ला खोजत-खोजत मेहतरू हा बरातू ला भेंट पईस,राम-राम जोहार हुईस ता बरातू हा पूछीस-काय होगे मेहतरू भाई बिह्नियाच बिहनिया हलकान दिखत हस,काय अलहन होगे, मेहतरू किहिस -का बतावं बरातू भाई!जमराज महाराज हा कोरट जाये बर तेयार बईठे हवय,भैंसा ला बने मांज-धो के खवा पिया के पानी भरे ला गे रहेवं कोन जानी कहाँ मसकदिस लुवाठ हा,उही खोजत हवं गा,बरातू किहिस -भैंसा ला ता ये दे इही बाजार चौक मा भेंटे रेहेवं.पुछेवं ता किहिस वो दे लछमन के बाबु भुलाऊ हा कम्पूटर दुकान खोले हवय उंहा जात हवं,अईसने बतईस गा मोला बाकी ला तैं जान,मेहतरू हा दऊडत-दऊडत चित्रगुप्त मेर गिस अऊ किहिस महाराज भैंसा हा मिल गे हवय,चल जल्दी बाजार में हवय नहीं ते अऊ कौनो मेर रेंग दिही हमर मन के बुता ला ते आज जमराज महाराज बना दिही, चित्रगुप्त हा झटकून मेहतरू संग रेंग दिंस, बजार मा पहुचिस ता भैंसा ला अमर डारिस,बने भुलाऊ के कम्पूटर दुकान मा बईठे रहय माडिया के, चित्रगुप्त अऊ मेहतरू ला देखिस ते भैंसा हा "किहिस आव-आव तुही मन ला अगोरत रेहेवं में हा"!

चित्रगुप्त किहिस ते हा साले इंहा बईठे हस आके उंहा महाराज हा कोरट जाये बर तेयार बईठे तेहा इंहा माडिया के पगुरावत हस, भैंसा कथय-देख गा तैहाँ साले-ताले आनी-बानी के गोठ ला मत गोठिया,जैसे ते सेवक वईसने महू सेवक,ये दे तुम्हरे बुता ला बनाये बर आये हवं. काय बुता रे-चित्रगुप्त किहिस. तू मन कतका जमराज ला चुतीया बनावत हव तेखर भंडा फॉर करना हे कहिके इंहा इंटरनेट मा आये हवं, काली पंडरु हा किहिस बाबु एक ठीक नवा जिनिस आये हवय इंटरनेट मा अऊ भुलाऊ टूरा हा खोले हवय बजार मा ओमा काहीं भंडाफॉर करना हे ता जा,उंहा जा के बुलाग ला बनवा के अपन गोठ ला कहिबे तहां छाप दिही अऊ जम्मो दुनिया हा जान डारही,तेखरे सेती मेहा इहाँ आये हवं.

हमन काय चुतीया बनात हन रे?मेहतरू किहिस, तेहा चुतीया कथस देख मोर मनता हा भोगाही ता आने -ताने हो जाही,साले तेहाँ मोर खरी-चुनी ला लेग के अपन भैंसी ला खवा देथस, हरियर कांदी ला थे तेला अपन घर मा लेग जथस,काय अपन डौकी ला खवाथस के अपन दाई ला खवाथस,साले अऊ मोला पूछत हस काय चुतीया बनावत हस,काली रात के मोर पंडरु हा लंघन भूखन रही गे,अरे ओखर दाई मर गे ता का होगे में ता हवं ओला पोसे बर, मोर नाव ले खाए के पईसा देते जमराज हा तेला तुमन उडावत हव अऊ उही पईसा मा मेछरावत हव, डेढ़ कुंटल के सवारी ला बोहे -बोहे महू हा थेथर -मेथर हो जाथों,इहु ला काय सूझे हे जमराज ला भैंसा मा चढे के कौनो घोडा-मोडा लेतिस तेमे चढ़तिस ता भैंसा के सऊख करत हे,अऊ तेहा चित्रगुप्त बने हस तोरो मजा ला चीखाहूँ, ते काय नई करस, जमराज इंहा मुकदमा चलथे ता पेशी बढाये के पईसा,गवाही करा ले घलो अऊ मुद्दई करा ले घलो,दुनो डाहर ले खा बाबु,कौनो ला रोरव नरक के सजा सुनाथे तेखर फईले ला गायब कर देथस अऊ नरक वाला मन फाईल ला मांगथे ता नई मिलत हे कहिके मुजरिम ला इन्हें मजा करावत हस,तोरो अड़बड पोल हवय सब ला खोल के दुनिया ला जनाहूँ के तुमन घला भ्रष्ट हव,धरती के बीमारी इंहा तक ले लहुट गये,उहाँ के मनखे मन तुमन ला भगवान बना के पूजत हवय,इहाँ तुमन मोरे चारा दाना पानी ला खावत हव, में हाँ नई जांव अऊ एदे मेहतरू हा साले मोर नहवाये के साबुन ला अऊ माटीराख घलो ले जथे, जमराज ला कहिबे इही हाँ अपन पीठ मा बोह के लेगही ओला कोरट मा, जाओ तुमन हा, मोला तुमहर पोल ला बलाग मा खोलन दओ.

दुनो झन भैंसा के गोठ ला सुनिस तहाँ जम्मो दुनिया के आघू मा नगरा हो जाबो सोच के भैंसा के गोड ला धर लिस अऊ गोहार पारत किहिस "आज अईसन गलती नई होय भैंसा महाराज हमन ला माफ़ी दे दे ये छापे छापे के अलहन बुता ला झन कर" बोलो ना रे अभी ता तुमन साले-माले कहत रहेव अऊ अभीचे गोड ला धरत हव, छापों का ? नई -नई भैंसा महाराज अईसन झन कर गा, ते जौन कहिबे तौन मान लेबो हमन-चित्रगुप्त रोंवासी हो गे, ता फेर ठीक हे मोर थोकिन सरत हे तेला मने ला पड़ही. ले बता ददा बता-मेहतरू किहिस, पहिले बात मोर कोठा मा गोबर कचरा के सफाई दू-दू घंटा मा होना चाही,मोर कोठा मा पंखा-अऊ ऍसी होना चली, रोज हरियर कांदी अऊ बने अकन खरी चुनी होना चाही,मोर नहाये बर फुव्वारा के बेवस्था होना चाही, अऊ देख रे मेहतरू डेटोल के साबुन मा रोज मुंधरहा अऊ संझकरहा बने घंसर-घंसर के नहवाबे, अऊ मोर पंडरु बर तोर भैंसी के दूध के बेवस्था करबे-मंजूर हे ता बताव -भैंसा हा किहिस, चित्रगुप्त अऊ मेहतरू पहटिया दुनो झन गोड ला धर के किहिस -मंजूर हवय हम ला अऊ आप मन रिस ला छोडोव्, हमर संगे चलव जमराज हा अगोरत हे,अड़-बड बेरा होगे खिसियात हो ही, खिसियाही तू मन ला मोला काबर खिसियाही, अऊ मोला कांही किहिस ते तुमहर जम्मो भेद ला फेर ओखरे आघू मा बफल दू हूँ . ले ओपार ला में बना लू हूँ ते चल-चित्रगुप्त किहिस, में हा ता चलत हवं फेर जान लुहू ना महू हा छापे ला जान डारे हवं, अईसे कहिकी भैंसा हा रेंगिस.

संगी हो कईसे लागिस हमर भैंसा के छ्पाई हाँ? बने बताहू.चिठ्ठी, इ मेल, अऊ टिपणी ले.....

आपके गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा

अभनपुरिहा

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

जइसन के मालिक लिये दिये, तइसनेच देबो असीस

संगी हो देवारी तिहार के गाडा-गाडा बधई,
हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति के खजाना हा टप-टप ले भरे हवय, कभू -कभू अईसन लागथे के जम्मो दुनिया ले अमीर हमी मन हन. हमर तिहार हमर संस्कारे मन हमला अमीर बनाथे, हमर संस्कार अऊ संस्कृति के बचाए के जिमेदारी हमरे हवय.इही म एक ठक रतन हवय हमर राऊत नाचा. हमर राउत नाचा के अलगे पहिचान हे, हमर यदुवंसी भाई मन के परमपरा से चले आवत ये दे नाचा हा, हमर जीवन मा एक नवा जोश अऊ सक्ती भरथे, जम्मो राउत भाई मन साज सिंगार करके बने रंग-रंग के बाना पहिर के जब जोहारे ला निकलथे ता ओखर छटा हा निराला होथे, अऊ जब नाच हा चलते अऊ बाजा हा बाजथे ता संगी हो गोड हा नई रुकय, अपने अपन नाचे ला धर लेथे, एक रस के हा सरीर मा समां जथे अऊ मन मयूर हा नाचे ला धर लेथे.जौन ढंग ले परान बिन सरीर, पुरुस बिन नारी, उजियार बिन अंधियार, तईसने गड़वा बाजा बिन राउत नाचा बिन परन के हवय.जब गड़वा बाजा संग राउत भाई मन सलूखा, धोती, बासकिट, कौडी के जेवर, मूड मा पगड़ी, पांव मा घुंघरू, कमर मा चाँदी के करधन, हाथ मा तेंदू के दू-दू ठक लऊड़ी अऊ बने पहिर ओढ़ के नाचे-जोहारे बर निकलथे ता अईसन लागथे के किसन भगवान के सेना हा महाभारत के लड़ई जीते के खुसी मा नगर अगवानी मा  नाचत-गावत हे, एक दम जोश हा मन मा भर जथे. जब दोहा पारथे ता लागथे जईसन विजय के उदघोस करत हवय,
जइसन के मालिक लिये दिये, तइसनेच देबो असीस
रंग महल मा बईठो मालिक जियो लाख बरीस,
अईसन असीस हा सुन के जम्मो चोला हा गद-गद हो जथे.हमर सस्कृति ला बचाए के श्रेय राउत भाई मन ला जथे. जम्मो भाई मन ला देवारी तिहार के पर्रा-पर्रा, गाडा-गाडा भर बधई,
जोहार लेहु गा संगी हो.

आप मन के  

गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा
अभनपुरिहा 

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

ये दे पटवारी ला फेर छरे हे, काबर कि रावन नई जरे हे



हमर पटवारी भईया के गोठ ला आघू बतावत हवं, पटवारी भईया ला समाज सेवा करे के बिमारी ता हवय, कईसनो भी बुता हो ही वो हा नई करवं कहिके नई कहय, सरलग १० दिन भले लग जाये फेर बुता सामाजिक होना चाही, बिना खाए पिए लंघन भूखन रही के, करही।  अभी का होईस के टूरा मन दुर्गा पक्ष में ओला देवी माई मडहाबो कहिके समिति के सियान बना दिस, काबर के चंदा मांगे मा पटवारी ला काही शरम नई लगे।  चंदा मांगे बर एक से एक दोहा तैयार कर डरे हवय।  "मांगन से मरनो भलो जो मांगू अपने तन के काज - परमारथ के कारने आवे ना मोहि लाज," अईसने दोहा मन ला पढ़ - पढ़ के चंदा मांगिस।  चंदा के मांगत तक ले समिति के टूरा मन हा संगे मा रिहिस, पईसा सकला गे। समारू के छोटे टूरा बाठुल ला खजांची बनाये रिहिस जम्मो पईसा ला उही ला धरावे, जऊन दिन दुर्गा के मूर्ति लाना रिहिसे तउन दिन बिहनियाच -बिहनिया बाठुल ला खोजिस,  त बठुल ला नई पाईस।  पटवारी संसो मा परगे, जम्मो चदा ला में मांगे हवं गिंजर -गिंजर के अऊ ये दे ठउका बेरा मा टूरा हा फरार होगे-मूर्ति वाला ला, गाड़ी वाला ला, पूजा के सामान- जम्मो के पईसा ला देना हवय। टूरा हा खोजे मा नई मिलत हवय, पटवारी हाँ माथ ला धर के बईठगे।


संसो मा परगे कईसे होही कहिके, तभिचे ओखर मितान हा अमरगे। पुछिस कईसे माथ ला धरे बईठे हस गा, पटवारी ह अपन पीरा ला बतईस, त मितान हा तुरते ५ हजार हेर के दे दिस, ले जा रे भाई पहिले बूता ला कर टूरा ला पाछु खोजबो, त पटवारी भईया हा, उही पईसा में सबो जिनिस ला बिसईस अऊ पूजा पष्ट ला चालू करईस। पाछु पता चलिस के समारू के टूरा बाठुल हा पईसाच ला जोंगत रिहिसे अऊ पईसा पाईस ता चन्द्रिका टुरी ला धर के उड़रिहा भाग गे, पटवारी भईया हा चुचुआत रहिगे, वो दे मितान हा ओखर मरजाद ला बचा दिस नहीं ते फेर गावं भर के मिर जुर के बने ठठाए के उदिम लगा ले रिहिस।

ये दे दुर्गा नवमी के पाछु दसेला आथे, हमर गावं के रावन भाठा मा लीला के आयोजन करके रावन मारे जाथे, जम्मो गावं वाला मन ये तिहार ला बने साल भर ले अगोरथे, फेर पटवारी भईया हा रावन मारे के जिम्मा पर गे, नवमी के रात भर माई पिला भीड़ के बने रावन ला बनाईस, बने सनपना के कागज लगा के पैरा ला भर के रंग पेंट ला बने रचाईस,  हंडिया के १० ठक मुडी बनाये रहाय,  तरी के गोड मान ला बना के मूड ला चढाहूँ कही के मुडी मन ला अलगा के रखे रिहिस,  तम्भिचे एक ठक गोल्लर हा गईया ला कुदावत आईसे, अऊ गाय हा रावन के मुडी मा आके भदाक ले गिर गे रावन के ४ ठीक मुडी हा फुट गे, फेर रोवत -गावत मुडी ला बनाईस, रावन के ठाठ मा मुडी ला चढा के खड़े करिस, बने सुभीता होगे चल बनगे कहिके घर भीतरी खुसर गे, नहा खोर के निकलिस ता रावन के गोड डाहर के पैरा ला गरुआ मन खा दे रिहिस, पटवारी हा माथ ला धर के बईठ गे, घेरी -बेरी इही बूता हो गे साले हा कहिके।

रावन हा एसो त मोला बने पेर डारिस गा-कहत हे, फेर ले दे रात के रावन ला बने ठेस जाच के सुधारिस, रात के एक बज गे रहय, जा के सूत गे, बिहान्चा उठ के देखिस ता रावण महाराज हा बने खड़े रिहिस, पटवारी सोचिस ले बने होगे, संझा के रावण के दहन हो जाही ता मोर परान हा बाँच जाही, अईसे कहिके रावन ला रावन भांठा में बने बीचों -बीच लेग के गाडिया दिस अऊ मझानिया जा के सूत गे काबर के रात भर के जागरण रिहिस, पटवारी हा जईसने सुतिसे, तईसने पानी हा चालू होगे कस के पानी दमोरिस, रावन हा जम्मो फिंज गे, संझा के बेरा मा जम्मो गावं वाला मन आईस ता देखिस रावन हा फिंज गे हवय, अब कईसे लिल्ला हो ही? रावन हा फिंज गे हवय कईसे जरही,  त एक झन किहिस पटवारी के गलती हवय, रावन ला भाठा मा खड़े करके जा के सूत गे बने परसार मा रखे रहितिस ता नई फिंजतिस, अईसने सब गोठ बात चालू होगे, त संगी हो हमर गावं के रावण हा जरे नई ये अऊ जम्मो झन टूरा मान ह दारू पीके पटवारी ला खोजत हवय अब आप मन अपने जान डारो के पटवारी संग आज का होवईया हे, रावण हा जरे नई ये जम्मो गंवईहा मन रावन भांठा मा जुरिआये हवय, मोला दशा अऊ दिशा ठीक नई दिखत हे, महू हा घर डाहर मसकत हौं आपो मन हा मौका के फयदा बने उठाओ अऊ आपन घर डाहर रेंगो, अऊ पटवारी के काय होही तेला काली के पेपर मा पढ़हु।

आपके
गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

नई उतरिस बिच्छी के झार-पटवारी साहेब ला परगे मार

हमर पटवारी भईया हा नवा-नवा उदिम लगावत रहिथे,थोकिन मा फेल घलोक हो जथे,ए बेरा ओ हा सोच डारिस पराकृतिक ह बने हवय, अनप घर मा एक ठक बोरड ला बनवा के लगा दिस, पटवारी के परकिरित चिकित्सा सनसथान, इंहा बिना दवई,सूजी,गोली के फोकट मा जम्मो बीमारी के इलाज होथे, समाज सेवा बर निह्सुल्क संचालित, डॉ.पटवारी,आदेश गुरु महाराज के, अऊ पटवारी भईया के फोकट के दवा खाना चालू होगे, पहिले -पाहिल मरीज आइस हमर भकाडू बबा हा, देखिस ता डॉ.पटवारी हा खुस होगे,ये दे आज्जे दुकान ला चालू करे हवं अऊ मरीज आना घलोक चालू होगे,आ बबा बईठ कहिके बईठार लिस, पटवारी -'का होगे बबा?'भकाडू बबा- 'का बताओं गा एक हफ्ता ले बुखार धरे हवय बने गोली खायेवं फेर माडहिस नईये,एक दम तीपे हवय देखना' पटवारी कहिस - 'तोला तो अड़ बड बुखार धरे हवय बबा,ये दे हाथ ला छी के जानेव,अब इंहा आगेस सब बने होही, माड जाही कौनो संसो करे के गोठ नई ये.'

अईसे कहीके पटवारी ह बबा ला टेबल में सुता दीस,'देख बबा परकिरित चिकित्सा में तोला डरे के कोई बात नई ये, सरीर हा तीपे हवय तो ओला ठंडा करे के चाही, में बर्फ मंगावत हंव' कहिके परसोत्तम ला पठोईस. 'बने बर्फ के ठंडा पानी मा नहाबे ता तोर बुखार हा उतर जाही,ते बने हो जाबे बबा कहिके बने टेबल मा सुता लीस,पटवारी अऊ परसोत्तम दुनो झन मिलके बबा ला एकदमे ठंडा पानी मा नहवा दिस,पानी सरीर मा परिस तो बबा हा मार डरे रे कहिके जोरदार चिल्लईस, रद्दा बाट मा रेंगईया मन पटवारी के घर भीतरी आगे,का होगे कोन मरत हे कहिके,देखिस ता पटवारी अऊ ओखर नौकर परसोत्तम दुनो झन बबा ला धरे रहाय अऊ ठंडा पानी ला डारत रहाय, बबा हा छटपटात रहाय अऊ बचाओ -बचाओ कहिके गोहार पारत रहाय, ओ मन बबा ला हाथ लगा के देखिस ता ठंडा होगे रहाय,बेचारा मन बबा ला धर के हस्पीटल लेगीस त उंहा के डाक्टर मन हा इलाज चालू करिस त तीन दिन मा बबा हा होंउस आईस, ये दे बेरा मा पटवारी ला समझास दे के सियान मन हा छोड़ दिस, पटवारी हा बाँचगे.

कहिथे ना कुकुर के पूंछी हा टेडगा के टेडगा रहिथे नई सुधरय,तईसने गोठ पटवारी के हवय.एके हफ्ता होय रिहिस ये घटना ला,पटवारी हा फेर एक ठक नवा मरीज पा गे, पाछू के मोहल्ला मा देवार डेरा हवय, दारा सिंग देवार के टूरा ला बिच्छी चाब दिस, ओमन टूरा ला धर के ओखरे मेर लान दिस, टूरा के संगे -संग जम्मो देवार डेरा हा उमड़ गे, पटवारी देखिस मरीज आये हवय, पहिले तो सोचिस नई करवं इलाज ला,फेर सोचिस जेन हा अपन होके इलाज कराये बर आये हवय तेखर तो करना चाही, डाक्टरी के पेसा मा कोनो ला मना नई करना चाही अईसे कहिथे,सोच के पटवारी हा घर में टूरा ला बला डारिस. अऊ पुछिस" काय होगे गा? बिच्छी काट दिस साहेब -देवार किहिस, कोन मेर काटे हवय ? पटवारी पुछिस. एदे जेवनी गोड में काटे हवय- देवार किहिस. पटवारी पुछिस- ता कोनो हा माखुर धरे हव ?धरे हवं, कहिके एक झन देवार हैं पटवारी ला माखुर दिस. डॉ.पटवारी हा थोकिन माखुर ला घस के सान्फी मा रखिस अऊ ओमा पानी डार के, टूरा ला पुछिस- कोन गोड मा काटे हवय, टूरा हा किहिस जेवनी मा, ता डेरी आंखी ला खोल किहिस अऊ जईसने डेरी आंखी ला खोलिस ता माखुर के पानी ला टूरा के आंखी मा नीचो दिस,टूरा हा दाई ओ .........

कहिके आंखी ला धर के गोहार पारे लागिस' मोर आंखी ला फॉर डारिस कहिके, दू मिनट मा टूरा के आंखी फूल के लालियागे,देवार मन देखिस ये दे टूरा के आंखी फ़ुट गे, जम्मो झन डौकी लईका सुद्धा पटवारी ला छरे ला चालू कर दिस, जउन पावथे तउन भका भक चालू हवय, बेदम मार गा, में हा दुरिहा ले देखत रहेवं, ओ...........हो............बेदम मार ,गरुवा कस पीटत हे, महू हा जीव परान दे के घर डाहर भागेवं, काबर का भीड़ मा कभू -कभू देखईया हा घला परसाद पा डारथे, इही ला  कहिथे का? "आंजत-आंजत कानी होगे "

कईसे लागिस संगी हो हमर पटवारी भईया के गोठ-बुता हा,जरा बटन ला चपक के बतावव मयारू हो

आप मन के
गंवईहा संगवारी

ललित शर्मा
अभनपुरिहा

रविवार, 4 अक्तूबर 2009

अड़हा बईद परान घाती-पटवारी साहेब ला पर गे फांसी

संगी हो जोहार लओ
 

हमर पटवारी भईया हा जम्मो जमाना ला सुधारे के ठेका ले डारे हवय अपन परन के एकदम पक्का हवय,"परान जाये पर बचन न जाये तईसे,एही सुधारे के बुता मा कईयों बेर मार खा डारे हवे पर सुधरे नहीं,एक घांव हमर गांव मा राजीव दीक्षित आये रिहिसे,स्वदेशी आन्दोलन चलावे, तौन हा बता डारिस के बहुराष्ट्रीय कम्पनी के मॉल खरीदे मा हमर देश के कतना नुकसानी हवय,पटवारी भईया हा बने चेत लगा के सुनिस अऊ ओखर बाद एक दिन वो हा पढ़ डारिस के कोनो दवई कम्पनी  हा पहिले दवई बनथे ता अपने मनखे ऊपर परयोग करथे, जब दवई हा बने काट करथे तभे बाज़ार मा बेचे बर उतारथे, ता राजीव दीक्षित के बात ला गांठ बांध के बड़े कम्पनी मन के जिनिस साबुन,माटीराख ,तेल-फूल,सब लेना बंद कर दिस,माटी मा मूड ला मिन्जै,अऊ महि लगा के दाढ़ी बनावे घानी के लिम तेल ला मूड में लगावे कोयला ला पीस के मंजन बना डारिस उहिच ला घसे, बिहनियाच ले पीवरी  कपडा पहिर के गटर माला ला घेंच मा अरो के साधना करात हवं करके फेर उही बुता चालू कर दिस, तीर मा ऑधे ता मरे कुकुर बिलाई अईसन महके ला धर लिस, अऊ दुसर हा कहे कईसे गा पटवारी भईया ये का कर डरे गा सिरतोन मा एक दम महकत हे,तुमन ये सब गियान के चीज ला कए जानहु अड़हा  हो, ये दे हा परकिरित चिकित्सा हवय.संगे एक ठक बात ला अपन डाहर ले जोर डारिस के दवाई गोली झन खाव सरीर ला भगवान बनाए हवय ता एखर दवाई सरीरे के अन्दर मा हवय,अपन बीमारी ला अपने ठीक करथे,कई बेर ले मार खा डारे हवं ये बेर बने तोल-मोल-के-बोल वाला बुता करना हे,एक दिन में ओखर घर गेंव का हाल - चाल हे तेला पूछे बर,बहिर में ओखर बाबु हा खेलत रिहिस,मेहा पुछेवं-कईसे रे गोंडुल कहाँ हे तोर पापा हा, गोंडुल कहिथे "पापा हा सुते हे, काबर रे ?में पुछेवं, गोंडुल किहिस -बुखार धर ले हवे, में कहेवं "बुखार धर लिस काली ता मोला कहत रिहिसे प्रकितिक चिकत्सा चालू कर दिया हूं, कहिके, गोंडुल कहिथे-का हे अंकल अभी वो रोज रिषी सनान करत रिहिस न, कईसे रे में पुछेवं,गोंडुल हा कहिते"रोज सूबे ले चार बजे उठ के टांकी के ठंडा पानी मा नहावय तेखरे सेती निमोनिया धर ले हवय डाक्टर हा कहात रिहिसे, मेहा घर भीतरी में निगेवं ता खटिया मा पडे रहय आ भाई बईठ कहात हे,में पुछेवं-कईसे कर डरे गा, ता कहत हे कांही नई होय हे, थोकिन बुखार धरे हवे,बने हो जाही, काय बने हो जाही १५ दिन ले खटिया धरे रिहिस अऊ १० हज़ार पईसा ला डाक्टर मन हा  गोली दवई मा चुहक दिस, अपन गोठ मा अडेच रहिथे,डेरी गोड के अंगठा मा घाव होगे, सबो झन ओला किहिसे,इलाज कराले गा,ता वो हा कहे सब ठीक हो जाही सरीर हा अपने अपने अपन ठीक करथे,जब अंगठा हा बससाये ला धर लिस तभे डाक्टर करा गीस इलाज कराये बर,ले दे के ओखर गोड हा बांचिस,अईसन हमर पटवारी भईया के गोठ हे गा,काली कहत रिहिसे,अब महू ला डाक्टरी करे लागहि,पराकिरित चिकित्सा में अड़बड गुन जडी बूटी अऊ हवा पानी मा इलाज हो जथे तुमन मानौ नई,
संगी हो काली पटवारी भईया के डाक्टरी ला देखबो, आज के कथा के इही मेर बिसराम  हे

आपके
गंवैय्हा  संगवारी
ललित शर्मा
अभंपुरिहा 

मंगलवार, 29 सितंबर 2009

फोकट के गियान- झन दे सियान - पटवारी भईया के गोठ बात



संगी हो जोहर लओ


काली के गोठ ला आगे बढ़ावत हौं संगी हो, हमर पटवारी भैया के किस्सा नई सिराय हवे, एखर तो एक ले एक किसा हवे, पटवारी ला पढ़े के बहुत सौउंख हवय, सबे तरह के पुस्तक ला पढ़थे, पुस्तक पढ़ना घलो एक ठक बीमारीच आये, घर ले पटवारीन हाँ बाजार भेजते साग ले बर, ता बूजा हा साग के पईसा के पुस्तक बिसा डारथे, रेलगाडी मा जाथे ता बिदाउट जाथे, साधू के बाना ला लगा के भेस बदल के चल देथे अऊ टिकिस के पईसा के पुस्तक बिसा ले थे, घर के सबो झन एखर ले अब परसान होगे, दिन रात बइहा भुतहा कस गियान बांटे के उदिम लगावत रहिथे, एक घावं का हुईस का बताओं संगी हो बताये मा घलो सोचे ला परत हवय, ओखर मन मा पुस्तक पढ़े के गियान आगे के गुण तीन रंग के होते, सत+तम अऊ रज, मांस मदिरा अऊ भोग तमोगुन मा आथे, पटवारी हा सोच डारिस ये दे तो बड़ गियान के बात हवय एखर परचार परसार होना चाही, ता कईसे करे जाय, एक दिन बिहानियाच बिहनिया दारू भट्ठी के आघू मा खड़े होगे जौउन भी पी के आवय तेला धर के दारु के अवगुन समझावे, दरुहा मन ओखर गोठ ला धियान नई दे के रेंग देवैय, अऊ कहय"पटवारी है अतका बईहा हो जाही हमन सोचे नई रेहेन गा, पहीले पहील रद्दा मा रोक के गोठियावे, ये दे अब भट्ठी तक अमरगे,हलाकान कर डरे हे गा,"  दू दिन ले सरलग इही बूता चलिस भट्ठी में गिराहिक आना कमती होगे, भट्ठी के गल्ला हा खंगती होगे, ठेकेदार ला जब एखर बूता के पता चलिस ता अपन पंडा मन ला चमकईस" साले अईसे मा ता तुमन मोला बोर डारहु नई बचावव ओला सुधारो रे,' आघू दिन पटवारी हा फेर भट्ठी पहुँचगे, पंडा मन ओला देखिस त किहिस "आ भईया घाम लागत होही ऊँहा काबर खड़े हस गा"अईसे कहिके भीतरी मा लेगिस अऊ नगद छरिस, मार ला देखिस ता पटवारी बाहिर भागे के कोसिस करिस ता भट्ठी के मुहाटी मा दरुहा मन (जेन ला गियान बांटे रिहिस) ठेंगा धरके खड़े रहय उहू मन मौउका का फईदा उठईस भका-भक इहु मन दिस, बहिती गंगा मा अपन हाथ धो डारिस, लटे-पटे पटवारी हा बांचिस अऊ जी पिरान ला देय के पुलिस थाना भागिस, मुड़ कान फ़ुट गे रहे, पुलिस हा समझईस "ये दे गियान हा दरुहा मनखे मन बर नइये भईया, जगा देख के गियान बांटे जाथे, तीन महिना ले खटिया मा परे रिहिस बिचारा हा, बने बूता करे ला सोचिस अऊ अलकरहा मा फंस के हाथ गोड़ ला टोरईस, तीन महिना बाद खटिया ले उठिस त सोचिस अइसने सोझे परचार मा साले मन हा मार मार के धुर्रा बिगार डारिस, बने दूसरा रद्दा खोजे जाय, जौउन मेर ओखर घर हे तौउन मेर चारो मुड़ा घला दरुहा मन रहिथे, त का करिस अड़बड़ अकन सद्वचन दारू अऊ दरुहा मन के खिलाफ में बना डारिस, अऊ येदे ला सबके कोठ मा लिखहूँ त बने परचार होही कहिके अपन मन मा सोच डारिस, दिन मा लिखहूँ  ता जम्मो कालोनी हा जान डारही कहिके रात के लिखे के बिचार करके गेंरु अऊ अमली के काड़ी के जुगाड़ कर डारिस, रात के १२ बजे सद्वचन के लेखन कारज ला चालू करिस एके ठक कोठ मा लिखे रिहिस तभे आरो होगे पारा वाला मन जग गे अऊ अंधियार मा चोर समझ के बने ठठा डारिस, हमन पहुचेन ता चीन्‍ह के छोडायेन पटवारी भईया हे कहीके, एक घांव गियान बांटे के चक्कर मा लहुट के फेर खटिया मा चल दिस.



आपके
गंवईहा संगवारी

ललित शर्मा
अभंपुरिहा

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

बियंग -पईधे गाय कछारे जाये-पटवारी साहेब ला कोन समझाये

संगी हो जोहार लेहु ना,
आज हमर पटवारी भईया के किसा ला सुनव, देखथवं मेहा आज कल समाज सेवा बड चालू होगे हवय, जहाँ देखबे उहां समाज सेवा,ये दे समाज सेवा हा एक ठक बहुत बड़े बीमारी हवय, छुतहा रोग हे,कई झन बड सौख ले करथे कई झन अपन जी पिरान ला बचाए बर करथे,हमर एक झन मयारू मितान हवय,हमन ओला पटवारी भइया कहिके बलाथन, उहू ला समाज सेवा के बीमारी धर डारे हवय, आज कल संस्कार अऊ सेवा,लईका मन ला सुधारे के गोठ,अऊ नाना परकार के गियान फोकट में बाटंत रहिथे,जम्मो गांव भर के मनखे मन ओखर ले अब डराय ला चालू होगे,ओखर समाज सेवा हा,ओखरो बर एक ठक बीमारी होगे हवय नइ कहीही  त  ओला  चैन  नई परय,कही दिस त लोगन मन समझ नइ परय,देह हा दुबरागे हवय आंखी हा खुसर गे हवय समाज ला सुधारे के संसो मा   दिन  रात  चैन  नइ  परय, समाज  सेवा  हा  महामारी होगे,घर मा जाथे त डउकी हा चमकात हे,लईका मन ला समझाथे त ओ मन नई समझे,बड़ा परेशानी मा परगे बपरा हा,ये दे बीमारी के पाछु मा एक ठन कहानी हवय के काबर ओला बीमारी हा धरिस,वो हा सरकारी नौकरी में लगिस त बने पद पा गे,अऊ पटवारी के नौकरी,चित भी ओकरे अऊ पट भी ओखरे चारो मुडा ले पईसाच पईसा,अब ओखर घर मा चंदा मंगईया के लेन लगे रहय, कभू पत्रकार,त कभू गणेस चंदा,त कभू धर्मसाला के चंदा,त कभू सरकारी चंदा, दिन रात हलाकान होगे.

एक बेर हमर गांव में भागवत होइस,ओ हा कान फूका के गुरु बना डारिस,गुरु मेर गियान पागे,अऊ पुस्तक ला पढ़ के उही गियान ला बनते ला धर डारिस, एखर अतका बड़े परभाव परिस कि ओखर मेर सबो झन के आना बंद होगे,अब काय करथे बिहनिया ले चंदा के रसीद ला धरके घर ले नहा खोर के निकल जथे,अऊ हरिदुवार बर चंदा सकेलथे,फोकट मा गियान बाँटथे,अब अइसे होगे हवय,ओला आवत देखथे त मनखे मन अपन रद्दा ला बदल दे थे अऊ त अउ अपन अपन घर मा सब ला चेता डारे हवय के पटवारी हा आही त कही दुहु सियान हा घर में नई ये,अइसन हाल हो गे,एक बेरा रिहिस के पटवारी ह लोगन मन ला देख के लुकावे,अब लोगन मन हा पटवारी ला देख के लुकाय ला धर लिस,जब कोनो हा ओखर ले बात नई करय त ओला भाषण देय के बीमारी घला धर डारिस जीहाँ भी होय जवनो मेर माइक लगे देख डारिस ते ज्ञान के गोठ चालू हो जथे,रुके घला नई,उत्ता-धुर्रा हांके ला धर लेते,देखत रहिथे कोनो उठ के ता नई भगाथे,जेन हा उठ के भागे के उदिम लगाथे तेखरे नावं ला ले के गोठियाथे त उहू हा बपरा हा बैठ जथे.

एक बेर रात के आइस मोर मेर चल त महाराज वोदे गांव में परवचन देना हे रात के ९ बजे ले चालू हवय आपो ला जायेला लागही,उहाँ के के संगी मन हा आप बर बिसेस निमंत्रण दे हवय,आप चलव,महू हा कहेवं रे भाई गंवई ता अपने हवे जाय मा कोनो अलहन नई ये,कहिके मैं हा घलो चल देंव गा,उहाँ जा के देखेवं ता जौन मंच बनाये रिहिसे तेमे बने जगर-मगर लैट हा बरत हे,माइक लगे हवय,सरोता हा नदारत हे,तीन झन बइठे रहाय,मेहा संसो मा पर गेंव कईसे करही बुजा हा इंहा कोनो नई ये,का बताओं संगी हो माइक ला धरिस अऊ उत्ता धुर्रा फेर चालू हो गे,निति अऊ गियान के गोठ हाँ रात भर चलिस जब सुकवा हा उगिस त मीही हां गेंव, देख महाराज अब परबचन ला बिराम देवो,तीन झन सरोता रिहिस उहू मन सूत गे अऊ चउदा झन कुकुर हवय तहु मन धन्य होगे,अगले जन्म मा मनखे बनही ता आपला धन्यवाद देय बर आही,अईसन हमर गियानिक पुरुष हवय पटवारी भइया हा.

संगी हो अभी पटवारी भईया के कहिनी हा सिराय नई हे थोकिन अगोरा करव मेहा लहुट के ओखर नवा किस्‍सा धर के आवत हंव.

जोहार लेव संगी हो .

आपके
गंवईहा संगवारी

ललित शर्मा
(कार्टून : त्र्यंबक शर्मा जी से साभार) ,

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

किसिम किसिम के गोठ अऊ...... भोभला बर चना चबेना

संगी हो जय जोहार,


में हाँ दू चार दिन पहिले ये बुलाग के सेवा ले हवं. एखर ले पहिले में हाँ नई जानत रहेवं काला बलाग कथे, जानेवं ता महूँ हाँ अपन गोठियाये के खजरी ला मेटाए बर ये दे बूता ला कर डारेवं, मोर डिमाग ले बुलाग के बूता हाँ बुलाग कम, बुलक दे जियादा हवये, हमन हांना कथन ना "मार के टरक दे अऊ खाके सूत जा" तईसने बूता बुलाग के हवे. अपन गोठ ला गोठिया ले तहां काखरो झन सुन. ओ कोती मूड ला पटकन दे. अऊ एक ठन नवा जिनिस देखेवं, इंहा रिकिम-रिकिम के साहितकार हवय, कई झन ता अलकरहा घलोक हे, रात दिन जागते अऊ लिखत रहिथे पढ़त रहिथे, मोला ता लागथे रात के घुघवा हाँ घलोक सूत जात होही पर ये मन नई सुतय, एखर मन के किस्‍सा कहिनी हा रात भर चालू रहिथे, मोर डिमाग हा नई पुरय. रंग-रंग के नावं हवय, कुकुर बिलाई मन के नावं हा घला नई बांचे हे उहू ला धर डारे हवय, में हा इंहा आके अडबड गियान पायेवं.

साहितकार ओला कथय जेन सब के हित ला सोचय, जम्मो समाज के हित के चिंता करे, साहितकार मन के गोठ हा दिन रात चलत रहिथे, कहिथे ना "बईला ला बांध दे घाट मा, अऊ..........ला फांद दे बात मा." अइसनेच बूता हवय जान लुहू गा. हमर गाँव मा घलो एक झन साहितकार हवय, में हा घर ले निकलेवं ता ओला भेंट पायेवं राम-राम जोहार होईस ता पुछेवं कहाँ जात हस गा बिहनिया-बिहनिया झोला धर के, ता वो हा किहिस - का बताववं गा एक ठक गीत लिखहूँ सोचत हंव त घर मा लईका मन करत हे हांव-हांव के मारे सबे मामला हा गड़बड़ हो जथे त बांधा पार में बइठ के लिखहूँ, बने साहित के सेवा करत हस गा अइसने होना चाही.

एक दिन टिरेन मा बिलासपुर ले आवत रहेंव त मोर सीट के पाछू मा एक झन मनखे हा जोर लगा लगा के कंही पढ़त रिहीस, दू चार ठन टूरा मन जुरियाये रिहिसे, गोठ ला सुन के महूँ हा लहुट परेवं, देखेंव त उहू साहितकार रिहीस याहा रोठ के डायरी ला धरे रहय अऊ कविता पढ़त रहय, इहु एक ठक साहित सेवा हवे, में हा पुछेवं, का बाबा टिरेन मा घला कबी समेलन चलत हे, ता वो हा किहिस-काखर अगोरा करबे के तोला कबी समेलन म बलाही अऊ परघा के तोर आनी-बानी के गीत अऊ कविता ला सुनही, ये बेरा मा सरोता मन घलोक हुसियार हो गे हवय, तैं कविता पढ़े ला चालु करबे तो बैईव बैईव कहिके नरीयाथे, तेकर इही बने १० रूपया के टिकिस कटा लोकल मा अऊ अपन कविता के पाठ ला चलन दे सरोता घलो मिल जाते अऊ कोनो बोरियात हे ते हा अगले टेसन मा उतर घला जथे, मोला अऊ नवा सरोता मिल जथे, सबले बढ़िया मोला इही मंच हा लागथे, में कहेंव धन्य हस बबा तेहां अतक बड बलिदान साहित बर देवत हस.

हमर तिवारी गुरूजी हवय तहां लकठा के इस्कूल में पढाये बर जाथे, ओखर इस्कूल के पाछू मा एक ठक कुंवा हवय, कुंवा हा सुक्खा हवय कोई १५ हाथ के होही, खाए के छुट्टी के बेरा मा एक बिदयार्थी हा कुंवा मा गिर गे, इस्कूल के छुट्टी होय के बेरा मा गुरूजी हा देखिस एक झन टूरा के बसता हा माढे हवय अऊ टूरा हा गायब हे ओला खोजिस, नई पाईस त कुंवा डहार ला देख लौं कहिके गिस, टूरा हाँ कुंवा में रिहीस अऊ गोटी पथरा ला बल भर उपर डाहर फेंकय, गुरूजी कुंवा मा झांकिस त टूरा हाँ कुंवा मा रिहीस अब ओला हेरे के संसो पर गे गुरूजी हा सोंचिस, लुवाई के टैम चलत हे सब्बो झन खेत खार मा जाये रहिथे कोन बलावं? तभे सुरता आइस गावं में एक झन "बिमरहा" नावं के कवी साहितकार रहिथे, वो हा सिरतोन मा बिमरहा नई ये, कवि बनिस त नावं खोजिस, कोनो नावं नई मिलिस, काबर के सबो नावं ला अऊ कवी मन पोगरा डारे हे त मेहा इही बिमरहा नावं ला धर डरत हवं, अइसे करके ओखर नावं हा बिमरहा परगे, ठेलहा उही मिलही, चल उही ला बलावं, टूरा ला कुंवा ले हेरे मा मदद करही, कहिके गुरूजी ओखरे मेर चल दिस, बिमरहा देखिस गुरूजी आये हवय कहिके खुस होगे, गुरूजी हा अपन पीरा ला बताइस, त बिमरहा कहिथे ये दे गुरूजी बने होगे ते आगेस त अभीच्चे एक ठन नवा गीत लिखे हावव थोकिन सुन ले फेर टूरा ला कुंवा ले हेर देबो अभी वो हा बने सुरकसित जगा में हवय, कांही संसो के बात नईये, जब गुरूजी ओखर खोली मा खुसरिस त देखिस पांच पन्ना के गीत, गुरूजी के ......................गे, अब नई बांचवं दादा कहिके, गीत ला सुनिस अऊ टूरा ला कुंवा ले हेरिस, अइसने घला साहित सेवा होथे.
अब बिसराम दव संगी हो, 
सब्बो झन ला मोर राम-राम जोहार लेवो. 
आपके गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा

रविवार, 20 सितंबर 2009

जय जय ३६ गढ़ महतारी


                        जय जय ३६ गढ़ महतारी
रिता होगे धान कटोरा
जुच्छा पर गे थारी
फिरतु हाँ फिलिप होगे
हवय बड़ लाचारी
ओखर घर चुरत हे बरा,सोहारी
मोर घर माँ जुच्छा थारी


जय जय ३६ गढ़ महतारी

खेत खार बेचे के फैले हे महामारी
लुट-लुट के नगरा कर दिस
नेता अऊ बेपारी
गंवईहा माते हे दारू मा
बेचावत हे लोटा थारी
जय जय ३६ गढ़ महतारी
रिता होगे धान कटोरा
जुच्छा पर गे थारी

मोर मन के पीरा ला
कैसे मै सुनावँव
चारों मुडा लुट मचे हे महतारी
तोलो कैसे मै बचावँव
मोर जियरा जरत हे भरी
जय जय ३६ गढ़ महतारी
रिता होगे धान कटोरा
जुच्छा पर गे थारी

आपके संगवारी
ललित शर्मा 


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