शनिवार, 19 जनवरी 2013

का कहिबे संगी गोठ ल


का कहिबे संगी, फ़ेर कहे बिगर रहे नइ सकंव, कहेच ल परही। जंगल-जंगल झाड़ी-झाड़ी पता चला है कहिथे। काय पता चला है भगवान जाने। फ़ेर जौन मोला पता चले हे तौन ला मीही जानथौं। रोज दिन के फ़ट-फ़ट होगे हे। बाबू के दाई कहिथे गैइस के सलिंडर ह मांहगी होगे हे। जम्मो पईसा त ईही ला विसाए में सिरा जथे। अऊ तैं हां निठल्ला साहितकार बने हस। काम के न कौड़ी के, पइसा के न बोड़ी के। कहां ले लानबो अतेक मांहगी सलिंडर ला। कांही उदिम करे रहितेस त बने रहितिस। टुरा हां घलो सिक्छाकर्मी के हड़ताल करके बरखास्त होगे हे। काहीं कुछु भुति पावत रहिस, दूधो गए दुहनो गए। मैं काय बताओं अपन पीरा ला। अजादी के बेरा मा अंगरेज मन के मार मा जतका हमर पुरखा मन के देंह नई कल्लाए होही, उंखर ले जियादा बाबु के दाई के ताना मरई मा दंरर जाथवं।

का कहिबे संगी, ओ हं समझथे के मीही सरकार आंव, मोरे बढाए ले जिनिस मन के रेट ह बाढथे अउ मोरे घटाए ला घटथे। काखरो मेरन गोहार पार लेवं, कोनो सुनईया नइए। जम्मो नेता मन कई पहारो के खाए बर ओइलाए मा भिड़े हे। केरा ला छिलका सुधा भकोसत थे अउ कुसियार ला सोज्झे चुहकत हे। पहीले के टैम मा जंगल ले आड़ी-झाड़ी लकड़ी लाने अऊ भात-साग जम्मों जेवन हां चुर जाए। सरकार ह परचार करे लागिस गैस के सलिंडर ला बिसाव, जंगल काटे ले हानि होवत हे। परयावरण ह जतर-कतर हो जथे, जंगल के काटे ले। अब गैस के सलिंडर ला बिसा डरे हन त रोज्जे ऊंखर कीमत ला बढावत हे। गाँव-गाँव मा बहु मन सुखियार होगे। जंगल, खेत-खार ले कोनो लकड़ी लाए बर नइ जाए। गैइस के सलिंडर नइए त चुल्हा के तीर मा कोन्हो नइ ओधय।

सास ह चुल्हा मा रांधे बर कही दीही त कोट कछेरी के मामला हो जही। जंगल ले लकड़ी लानबे त जंगल के साहब मन जुलुम करत हे, केस बना देथे। डीपो ले बिसाबे त ऊंहा लकड़ी के दुकाल पर गे हे। कोन्हो सुनइया नइए हमर मन के। हमर जंगल, हमर झाड़ी, हमर बाड़ी, हमरे नइए, सरकारी होगे हे। अइसन लागथे चारों मुड़ा ले धंधा गेन। जब ले गैइस आए त पता घलो नई चलय काखर घर मा खाए बर हे अउ काखर घर लांघन। पहीली के बेरा मा बिहनिया अउ संझा बेरा मा घरो-घर के छानी मां धुंगिया माड़ जाए रहाय।  त आरो हो जाए के काखर घर मा आगी बरत हे अउ काखर घर के लईका मन लांघन सुते के तियारी  मा हवे। कोन्हो न कोन्हो अरोसी-परोसी मन एको पइली चावंर ला अमरा दे त ओखरो घर चुल्हा बर जाए अउ लांघन सुते के नौबत नइ रहाय। अब 35 किलो चांवर ला रांधे चुरोए बर न गैइस हे न जलाऊ। काला कहिबे ग, करलइ हे, फ़ेर कहे बिगर रहे नइ सकंव। 

ललित शर्मा

3 Comments:

सूर्यकान्त गुप्ता said...

अभीच बइठ के भाई ललित के ये पोस्ट पढेंव ....

कहे के जरूरत नई ये हमर एरिया के मयारू

भाई ललित के गियान के बारे म ....बहुत सुन्दर

बियंग .......बधाई . अउ हाँ मोर संग अभी मोर

डेढ़ साला साहेब घलो तोर बियंग के आनंद लेवत हे .....

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सूर्यकान्त गुप्ता जी

दू बछर पाछू ब्लाग ह अपडेट होए हे। कोसिस रही के चलत रहाय लिखई ह। जय जोहार, बने मया धरे रहु :)

jayant sahu_जयंत said...

मया-पीरा ल गोठियाके मन ल बने हरूगरू करे हव।
........का कहिबे गा सबे डहर करलई हे।

blogger templates | Make Money Online