गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

छत्तीसगढ़ बनिस अपराधगढ़


का कहवं संगवारी, फ़ेर कहे बिगर नई रहे सकंव। छत्तीसगढ़िया सबले बढिया कहिथे। बढिया एखर सेती हे के कउनो ल तकलीफ़ नई दे। खाए बर नई रही त लांघन भूखन रही जाही फ़ेर काखरो घर मा चोरी डकैती करे बर नई जाए। जांगर तोड़ कमाथे अऊ भाजी-भांटा संग बासी-भात खा के अपन जिनगी ल चलाथे। काखरो संग लड़ई-झगरा करे बर घलो नई जानय। अपन आप मा मस्त रहिथे। फ़ेर जब ले छत्तीसगढ़ बने हे तब ले बइरी मन के नजर लग गे हे। चोरहा, डकैत, किडनेपर मन ह अपन बाहुबल ल देखाए बर छत्तीसगढ़ पहुंच जथे। सांत इलाका हे कहिकि समंदर के पानी मा पथरा फ़ेंक के लहर उठाए के परयास चालु हे।

कोन आवत हे, अऊ कोन जावत हे। काखर घर मा कोन सगा सौदर कोन गाँव ले आए हे तेखर आरो कोनो नई पावय। पहिले के जमाना मा काखरो घर मा कोनो सगा सौदर आ जाए त संझा के कोटवार ह पूछे बर धमक जाए के कोन आए हे, का नाव हे, कोन बूता म आए हे, कोन गाँव के आय? तहां जम्मो के मुसाफ़िरी दर्ज करके हफ़्ता म थाना म रपोट ल देवय। आज त राम राज चलत। कोनो भी गाँव अउ सहर मा आ के लूट पाट करके चल देथे। कोनो ह गम नई पाए। पुलिस ह डंडा धरे खड़े रहि जथे।

छत्तीसगढ़ ल युपी अऊ बिहारी मन ह चरागन बना डरे हे। चारों मुड़ा ले रेलगाड़ी मा चढ के आथे अऊ लूट पाट करके भाग जथे, जौन जिए खाए बर आए हे तौन मालिक बन जथे। दू चार बच्छर मा पईसा कोड़ी लूट-पाट के नेता घलो बन जथे। अऊ उही मन ल अगुवा मान ले जथे। चकचक बगुला कस उज्जर कुरता पैजामा पहिरे हाथ म मोबाईल धरे अऊ बड़े बड़े कार म चढे एमन ल देखे जा सकत हे। लूटम लूट मचे हे। कोनो माई बाप नईए। राजनीति के जम्मो खेल हे।

बिहारी मन छत्तीसगढ़ म रेलगाड़ी ल अपहरन करे के हिम्मत घलो कर डारिस। पुलिस वाला मन ला मार पीट के आरोपी ल छोड़ा के भाग गे। कोनो अमिताब बच्चन के फ़िलिम  कस किसा लगथे। आधा घंटा ले जम्मो ट्रेन ह गुंडा मन के चंगुल मा रहिस अऊ अतेक बेर म पुलिस ल पता घलोक नई चलिस। अब भाग गे त चारों मुड़ा खेत खार अऊ गाँव-गाँव के घर दुवारी मा खोजत हे। अतेक हिम्मत के काम बिना मिली भगत के कोनो नई कर सकय। अपराधी मन के होसला बुलंद होगे हे।

अइसन लगथे कि थोड़ समे बाद छत्तीसगढ ह छत्तीसगढ नई रहाय, अपराधगढ़ हो जही। अपराधी मन पुलिस ल धमकावत हे, मार पीट के घलो भाग जथे। गरीब गुरबा मनखे मन उपर केस दर्ज कर देथे। रिपोट लिखाए बर जाबे त रिपोट लिखे बर पेन-कागज मांगथे अऊ जांच मे आए बर पिटरोल खरचा मांगथे। जतेक भी दू लम्बर के धंधा चलत हे तौन मा जम्मो के हिसा बांटा बंधे हे। अपन-अपन हिसा ल पा डरिस तहां पब्लिक मरे के बांचय। का कहिबे संगी फ़ेर कहे बिगर नई रहे सकंव।

2 Comments:

सूर्यकान्त गुप्ता said...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सूर्यकान्त गुप्ता said...

'हमर छत्तीसगढ़ 'पहुना' के पुजारी

भले रेंग दे पहुना तोर टोंटा में रेत के आरी

तोर देख रेख करइयाच बनगे हे सिकारी

सांप रेंग दिस लकीर बनाके, अब पीटत रह ओला

काहीं नइ होय, चाहे तैं दे ओला कतको गारी

दसा होगे सोचाउल, काय करबे,

जनता घलो बूडे हे मस्ती माँ,

सही बात आय के नहीं? हमर संगी संगवारी !

भाई ललित के दिल से निकले 'करलई'

ओखर लिखई के जवाब नइये,

अतलंगहा मन बर परही भारी।

बहुत सुंदर भाई ललित .....जय जोहार ....

blogger templates | Make Money Online