मंगलवार, 29 सितंबर 2009

फोकट के गियान- झन दे सियान - पटवारी भईया के गोठ बात



संगी हो जोहर लओ


काली के गोठ ला आगे बढ़ावत हौं संगी हो, हमर पटवारी भैया के किस्सा नई सिराय हवे, एखर तो एक ले एक किसा हवे, पटवारी ला पढ़े के बहुत सौउंख हवय, सबे तरह के पुस्तक ला पढ़थे, पुस्तक पढ़ना घलो एक ठक बीमारीच आये, घर ले पटवारीन हाँ बाजार भेजते साग ले बर, ता बूजा हा साग के पईसा के पुस्तक बिसा डारथे, रेलगाडी मा जाथे ता बिदाउट जाथे, साधू के बाना ला लगा के भेस बदल के चल देथे अऊ टिकिस के पईसा के पुस्तक बिसा ले थे, घर के सबो झन एखर ले अब परसान होगे, दिन रात बइहा भुतहा कस गियान बांटे के उदिम लगावत रहिथे, एक घावं का हुईस का बताओं संगी हो बताये मा घलो सोचे ला परत हवय, ओखर मन मा पुस्तक पढ़े के गियान आगे के गुण तीन रंग के होते, सत+तम अऊ रज, मांस मदिरा अऊ भोग तमोगुन मा आथे, पटवारी हा सोच डारिस ये दे तो बड़ गियान के बात हवय एखर परचार परसार होना चाही, ता कईसे करे जाय, एक दिन बिहानियाच बिहनिया दारू भट्ठी के आघू मा खड़े होगे जौउन भी पी के आवय तेला धर के दारु के अवगुन समझावे, दरुहा मन ओखर गोठ ला धियान नई दे के रेंग देवैय, अऊ कहय"पटवारी है अतका बईहा हो जाही हमन सोचे नई रेहेन गा, पहीले पहील रद्दा मा रोक के गोठियावे, ये दे अब भट्ठी तक अमरगे,हलाकान कर डरे हे गा,"  दू दिन ले सरलग इही बूता चलिस भट्ठी में गिराहिक आना कमती होगे, भट्ठी के गल्ला हा खंगती होगे, ठेकेदार ला जब एखर बूता के पता चलिस ता अपन पंडा मन ला चमकईस" साले अईसे मा ता तुमन मोला बोर डारहु नई बचावव ओला सुधारो रे,' आघू दिन पटवारी हा फेर भट्ठी पहुँचगे, पंडा मन ओला देखिस त किहिस "आ भईया घाम लागत होही ऊँहा काबर खड़े हस गा"अईसे कहिके भीतरी मा लेगिस अऊ नगद छरिस, मार ला देखिस ता पटवारी बाहिर भागे के कोसिस करिस ता भट्ठी के मुहाटी मा दरुहा मन (जेन ला गियान बांटे रिहिस) ठेंगा धरके खड़े रहय उहू मन मौउका का फईदा उठईस भका-भक इहु मन दिस, बहिती गंगा मा अपन हाथ धो डारिस, लटे-पटे पटवारी हा बांचिस अऊ जी पिरान ला देय के पुलिस थाना भागिस, मुड़ कान फ़ुट गे रहे, पुलिस हा समझईस "ये दे गियान हा दरुहा मनखे मन बर नइये भईया, जगा देख के गियान बांटे जाथे, तीन महिना ले खटिया मा परे रिहिस बिचारा हा, बने बूता करे ला सोचिस अऊ अलकरहा मा फंस के हाथ गोड़ ला टोरईस, तीन महिना बाद खटिया ले उठिस त सोचिस अइसने सोझे परचार मा साले मन हा मार मार के धुर्रा बिगार डारिस, बने दूसरा रद्दा खोजे जाय, जौउन मेर ओखर घर हे तौउन मेर चारो मुड़ा घला दरुहा मन रहिथे, त का करिस अड़बड़ अकन सद्वचन दारू अऊ दरुहा मन के खिलाफ में बना डारिस, अऊ येदे ला सबके कोठ मा लिखहूँ त बने परचार होही कहिके अपन मन मा सोच डारिस, दिन मा लिखहूँ  ता जम्मो कालोनी हा जान डारही कहिके रात के लिखे के बिचार करके गेंरु अऊ अमली के काड़ी के जुगाड़ कर डारिस, रात के १२ बजे सद्वचन के लेखन कारज ला चालू करिस एके ठक कोठ मा लिखे रिहिस तभे आरो होगे पारा वाला मन जग गे अऊ अंधियार मा चोर समझ के बने ठठा डारिस, हमन पहुचेन ता चीन्‍ह के छोडायेन पटवारी भईया हे कहीके, एक घांव गियान बांटे के चक्कर मा लहुट के फेर खटिया मा चल दिस.



आपके
गंवईहा संगवारी

ललित शर्मा
अभंपुरिहा

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

बियंग -पईधे गाय कछारे जाये-पटवारी साहेब ला कोन समझाये

संगी हो जोहार लेहु ना,
आज हमर पटवारी भईया के किसा ला सुनव, देखथवं मेहा आज कल समाज सेवा बड चालू होगे हवय, जहाँ देखबे उहां समाज सेवा,ये दे समाज सेवा हा एक ठक बहुत बड़े बीमारी हवय, छुतहा रोग हे,कई झन बड सौख ले करथे कई झन अपन जी पिरान ला बचाए बर करथे,हमर एक झन मयारू मितान हवय,हमन ओला पटवारी भइया कहिके बलाथन, उहू ला समाज सेवा के बीमारी धर डारे हवय, आज कल संस्कार अऊ सेवा,लईका मन ला सुधारे के गोठ,अऊ नाना परकार के गियान फोकट में बाटंत रहिथे,जम्मो गांव भर के मनखे मन ओखर ले अब डराय ला चालू होगे,ओखर समाज सेवा हा,ओखरो बर एक ठक बीमारी होगे हवय नइ कहीही  त  ओला  चैन  नई परय,कही दिस त लोगन मन समझ नइ परय,देह हा दुबरागे हवय आंखी हा खुसर गे हवय समाज ला सुधारे के संसो मा   दिन  रात  चैन  नइ  परय, समाज  सेवा  हा  महामारी होगे,घर मा जाथे त डउकी हा चमकात हे,लईका मन ला समझाथे त ओ मन नई समझे,बड़ा परेशानी मा परगे बपरा हा,ये दे बीमारी के पाछु मा एक ठन कहानी हवय के काबर ओला बीमारी हा धरिस,वो हा सरकारी नौकरी में लगिस त बने पद पा गे,अऊ पटवारी के नौकरी,चित भी ओकरे अऊ पट भी ओखरे चारो मुडा ले पईसाच पईसा,अब ओखर घर मा चंदा मंगईया के लेन लगे रहय, कभू पत्रकार,त कभू गणेस चंदा,त कभू धर्मसाला के चंदा,त कभू सरकारी चंदा, दिन रात हलाकान होगे.

एक बेर हमर गांव में भागवत होइस,ओ हा कान फूका के गुरु बना डारिस,गुरु मेर गियान पागे,अऊ पुस्तक ला पढ़ के उही गियान ला बनते ला धर डारिस, एखर अतका बड़े परभाव परिस कि ओखर मेर सबो झन के आना बंद होगे,अब काय करथे बिहनिया ले चंदा के रसीद ला धरके घर ले नहा खोर के निकल जथे,अऊ हरिदुवार बर चंदा सकेलथे,फोकट मा गियान बाँटथे,अब अइसे होगे हवय,ओला आवत देखथे त मनखे मन अपन रद्दा ला बदल दे थे अऊ त अउ अपन अपन घर मा सब ला चेता डारे हवय के पटवारी हा आही त कही दुहु सियान हा घर में नई ये,अइसन हाल हो गे,एक बेरा रिहिस के पटवारी ह लोगन मन ला देख के लुकावे,अब लोगन मन हा पटवारी ला देख के लुकाय ला धर लिस,जब कोनो हा ओखर ले बात नई करय त ओला भाषण देय के बीमारी घला धर डारिस जीहाँ भी होय जवनो मेर माइक लगे देख डारिस ते ज्ञान के गोठ चालू हो जथे,रुके घला नई,उत्ता-धुर्रा हांके ला धर लेते,देखत रहिथे कोनो उठ के ता नई भगाथे,जेन हा उठ के भागे के उदिम लगाथे तेखरे नावं ला ले के गोठियाथे त उहू हा बपरा हा बैठ जथे.

एक बेर रात के आइस मोर मेर चल त महाराज वोदे गांव में परवचन देना हे रात के ९ बजे ले चालू हवय आपो ला जायेला लागही,उहाँ के के संगी मन हा आप बर बिसेस निमंत्रण दे हवय,आप चलव,महू हा कहेवं रे भाई गंवई ता अपने हवे जाय मा कोनो अलहन नई ये,कहिके मैं हा घलो चल देंव गा,उहाँ जा के देखेवं ता जौन मंच बनाये रिहिसे तेमे बने जगर-मगर लैट हा बरत हे,माइक लगे हवय,सरोता हा नदारत हे,तीन झन बइठे रहाय,मेहा संसो मा पर गेंव कईसे करही बुजा हा इंहा कोनो नई ये,का बताओं संगी हो माइक ला धरिस अऊ उत्ता धुर्रा फेर चालू हो गे,निति अऊ गियान के गोठ हाँ रात भर चलिस जब सुकवा हा उगिस त मीही हां गेंव, देख महाराज अब परबचन ला बिराम देवो,तीन झन सरोता रिहिस उहू मन सूत गे अऊ चउदा झन कुकुर हवय तहु मन धन्य होगे,अगले जन्म मा मनखे बनही ता आपला धन्यवाद देय बर आही,अईसन हमर गियानिक पुरुष हवय पटवारी भइया हा.

संगी हो अभी पटवारी भईया के कहिनी हा सिराय नई हे थोकिन अगोरा करव मेहा लहुट के ओखर नवा किस्‍सा धर के आवत हंव.

जोहार लेव संगी हो .

आपके
गंवईहा संगवारी

ललित शर्मा
(कार्टून : त्र्यंबक शर्मा जी से साभार) ,

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

किसिम किसिम के गोठ अऊ...... भोभला बर चना चबेना

संगी हो जय जोहार,


में हाँ दू चार दिन पहिले ये बुलाग के सेवा ले हवं. एखर ले पहिले में हाँ नई जानत रहेवं काला बलाग कथे, जानेवं ता महूँ हाँ अपन गोठियाये के खजरी ला मेटाए बर ये दे बूता ला कर डारेवं, मोर डिमाग ले बुलाग के बूता हाँ बुलाग कम, बुलक दे जियादा हवये, हमन हांना कथन ना "मार के टरक दे अऊ खाके सूत जा" तईसने बूता बुलाग के हवे. अपन गोठ ला गोठिया ले तहां काखरो झन सुन. ओ कोती मूड ला पटकन दे. अऊ एक ठन नवा जिनिस देखेवं, इंहा रिकिम-रिकिम के साहितकार हवय, कई झन ता अलकरहा घलोक हे, रात दिन जागते अऊ लिखत रहिथे पढ़त रहिथे, मोला ता लागथे रात के घुघवा हाँ घलोक सूत जात होही पर ये मन नई सुतय, एखर मन के किस्‍सा कहिनी हा रात भर चालू रहिथे, मोर डिमाग हा नई पुरय. रंग-रंग के नावं हवय, कुकुर बिलाई मन के नावं हा घला नई बांचे हे उहू ला धर डारे हवय, में हा इंहा आके अडबड गियान पायेवं.

साहितकार ओला कथय जेन सब के हित ला सोचय, जम्मो समाज के हित के चिंता करे, साहितकार मन के गोठ हा दिन रात चलत रहिथे, कहिथे ना "बईला ला बांध दे घाट मा, अऊ..........ला फांद दे बात मा." अइसनेच बूता हवय जान लुहू गा. हमर गाँव मा घलो एक झन साहितकार हवय, में हा घर ले निकलेवं ता ओला भेंट पायेवं राम-राम जोहार होईस ता पुछेवं कहाँ जात हस गा बिहनिया-बिहनिया झोला धर के, ता वो हा किहिस - का बताववं गा एक ठक गीत लिखहूँ सोचत हंव त घर मा लईका मन करत हे हांव-हांव के मारे सबे मामला हा गड़बड़ हो जथे त बांधा पार में बइठ के लिखहूँ, बने साहित के सेवा करत हस गा अइसने होना चाही.

एक दिन टिरेन मा बिलासपुर ले आवत रहेंव त मोर सीट के पाछू मा एक झन मनखे हा जोर लगा लगा के कंही पढ़त रिहीस, दू चार ठन टूरा मन जुरियाये रिहिसे, गोठ ला सुन के महूँ हा लहुट परेवं, देखेंव त उहू साहितकार रिहीस याहा रोठ के डायरी ला धरे रहय अऊ कविता पढ़त रहय, इहु एक ठक साहित सेवा हवे, में हा पुछेवं, का बाबा टिरेन मा घला कबी समेलन चलत हे, ता वो हा किहिस-काखर अगोरा करबे के तोला कबी समेलन म बलाही अऊ परघा के तोर आनी-बानी के गीत अऊ कविता ला सुनही, ये बेरा मा सरोता मन घलोक हुसियार हो गे हवय, तैं कविता पढ़े ला चालु करबे तो बैईव बैईव कहिके नरीयाथे, तेकर इही बने १० रूपया के टिकिस कटा लोकल मा अऊ अपन कविता के पाठ ला चलन दे सरोता घलो मिल जाते अऊ कोनो बोरियात हे ते हा अगले टेसन मा उतर घला जथे, मोला अऊ नवा सरोता मिल जथे, सबले बढ़िया मोला इही मंच हा लागथे, में कहेंव धन्य हस बबा तेहां अतक बड बलिदान साहित बर देवत हस.

हमर तिवारी गुरूजी हवय तहां लकठा के इस्कूल में पढाये बर जाथे, ओखर इस्कूल के पाछू मा एक ठक कुंवा हवय, कुंवा हा सुक्खा हवय कोई १५ हाथ के होही, खाए के छुट्टी के बेरा मा एक बिदयार्थी हा कुंवा मा गिर गे, इस्कूल के छुट्टी होय के बेरा मा गुरूजी हा देखिस एक झन टूरा के बसता हा माढे हवय अऊ टूरा हा गायब हे ओला खोजिस, नई पाईस त कुंवा डहार ला देख लौं कहिके गिस, टूरा हाँ कुंवा में रिहीस अऊ गोटी पथरा ला बल भर उपर डाहर फेंकय, गुरूजी कुंवा मा झांकिस त टूरा हाँ कुंवा मा रिहीस अब ओला हेरे के संसो पर गे गुरूजी हा सोंचिस, लुवाई के टैम चलत हे सब्बो झन खेत खार मा जाये रहिथे कोन बलावं? तभे सुरता आइस गावं में एक झन "बिमरहा" नावं के कवी साहितकार रहिथे, वो हा सिरतोन मा बिमरहा नई ये, कवि बनिस त नावं खोजिस, कोनो नावं नई मिलिस, काबर के सबो नावं ला अऊ कवी मन पोगरा डारे हे त मेहा इही बिमरहा नावं ला धर डरत हवं, अइसे करके ओखर नावं हा बिमरहा परगे, ठेलहा उही मिलही, चल उही ला बलावं, टूरा ला कुंवा ले हेरे मा मदद करही, कहिके गुरूजी ओखरे मेर चल दिस, बिमरहा देखिस गुरूजी आये हवय कहिके खुस होगे, गुरूजी हा अपन पीरा ला बताइस, त बिमरहा कहिथे ये दे गुरूजी बने होगे ते आगेस त अभीच्चे एक ठन नवा गीत लिखे हावव थोकिन सुन ले फेर टूरा ला कुंवा ले हेर देबो अभी वो हा बने सुरकसित जगा में हवय, कांही संसो के बात नईये, जब गुरूजी ओखर खोली मा खुसरिस त देखिस पांच पन्ना के गीत, गुरूजी के ......................गे, अब नई बांचवं दादा कहिके, गीत ला सुनिस अऊ टूरा ला कुंवा ले हेरिस, अइसने घला साहित सेवा होथे.
अब बिसराम दव संगी हो, 
सब्बो झन ला मोर राम-राम जोहार लेवो. 
आपके गंवईहा संगवारी
ललित शर्मा

रविवार, 20 सितंबर 2009

जय जय ३६ गढ़ महतारी


                        जय जय ३६ गढ़ महतारी
रिता होगे धान कटोरा
जुच्छा पर गे थारी
फिरतु हाँ फिलिप होगे
हवय बड़ लाचारी
ओखर घर चुरत हे बरा,सोहारी
मोर घर माँ जुच्छा थारी


जय जय ३६ गढ़ महतारी

खेत खार बेचे के फैले हे महामारी
लुट-लुट के नगरा कर दिस
नेता अऊ बेपारी
गंवईहा माते हे दारू मा
बेचावत हे लोटा थारी
जय जय ३६ गढ़ महतारी
रिता होगे धान कटोरा
जुच्छा पर गे थारी

मोर मन के पीरा ला
कैसे मै सुनावँव
चारों मुडा लुट मचे हे महतारी
तोलो कैसे मै बचावँव
मोर जियरा जरत हे भरी
जय जय ३६ गढ़ महतारी
रिता होगे धान कटोरा
जुच्छा पर गे थारी

आपके संगवारी
ललित शर्मा 


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